"आर्य-भूमि / महावीर प्रसाद द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
(5 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=महावीर प्रसाद द्विवेदी | |
− | + | |संग्रह= | |
− | + | }} | |
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
+ | '''1 | ||
जहाँ हुए व्यास मुनि-प्रधान, | जहाँ हुए व्यास मुनि-प्रधान, | ||
− | |||
रामादि राजा अति कीर्तिमान। | रामादि राजा अति कीर्तिमान। | ||
− | |||
जो थी जगत्पूजित धन्य-भूमि , | जो थी जगत्पूजित धन्य-भूमि , | ||
+ | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि ।। | ||
− | + | '''2 | |
− | + | ||
− | 2 | + | |
जहाँ हुए साधु हा महान् | जहाँ हुए साधु हा महान् | ||
− | |||
थे लोग सारे धन-धर्म्मवान्। | थे लोग सारे धन-धर्म्मवान्। | ||
− | |||
जो थी जगत्पूजित धर्म्म-भूमि, | जो थी जगत्पूजित धर्म्म-भूमि, | ||
− | |||
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
− | + | '''3 | |
− | 3 | + | |
जहाँ सभी थे निज धर्म्म धारी, | जहाँ सभी थे निज धर्म्म धारी, | ||
− | |||
स्वदेश का भी अभिमान भारी । | स्वदेश का भी अभिमान भारी । | ||
− | |||
जो थी जगत्पूजित पूज्य-भूमि, | जो थी जगत्पूजित पूज्य-भूमि, | ||
− | |||
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
− | 4 | + | '''4 |
हुए प्रजापाल नरेश नाना, | हुए प्रजापाल नरेश नाना, | ||
− | |||
प्रजा जिन्होंने सुत-तुल्य जाना । | प्रजा जिन्होंने सुत-तुल्य जाना । | ||
− | |||
जो थी जगत्पूजित सौख्य- भूमि , | जो थी जगत्पूजित सौख्य- भूमि , | ||
− | |||
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
− | 5 | + | '''5 |
वीरांगना भारत-भामिली थीं, | वीरांगना भारत-भामिली थीं, | ||
− | |||
वीरप्रसू भी कुल- कामिनी थीं । | वीरप्रसू भी कुल- कामिनी थीं । | ||
− | + | जो थी जगत्पूजित वीर- भूमि, | |
− | जो | + | |
− | + | ||
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
− | + | '''6 | |
− | 6 | + | |
स्वदेश-सेवी जन लक्ष लक्ष, | स्वदेश-सेवी जन लक्ष लक्ष, | ||
− | |||
हुए जहाँ हैं निज-कार्य्य दक्ष । | हुए जहाँ हैं निज-कार्य्य दक्ष । | ||
− | |||
जो थी जगत्पूजित कार्य्य-भूमि, | जो थी जगत्पूजित कार्य्य-भूमि, | ||
− | |||
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
− | 7 | + | '''7 |
− | + | ||
− | + | ||
+ | स्वदेश-कल्याण सुपुण्य जान, | ||
जहाँ हुए यत्न सदा महान। | जहाँ हुए यत्न सदा महान। | ||
− | |||
जो थी जगत्पूजित पुण्य भूमि, | जो थी जगत्पूजित पुण्य भूमि, | ||
− | |||
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
− | + | '''8 | |
− | + | ||
− | + | ||
+ | न स्वार्थ का लेन जरा कहीं था, | ||
देशार्थ का त्याग कहीं नहीं था। | देशार्थ का त्याग कहीं नहीं था। | ||
− | |||
जो थी जगत्पूजित श्रेष्ठ-भुमि, | जो थी जगत्पूजित श्रेष्ठ-भुमि, | ||
− | |||
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
− | + | '''9 | |
कोई कभी धीर न छोड़ता था, | कोई कभी धीर न छोड़ता था, | ||
− | |||
न मृत्यु से भी मुँह मोड़ता था। | न मृत्यु से भी मुँह मोड़ता था। | ||
− | |||
जो थी जगत्पूजित धैर्य्य- भूमि, | जो थी जगत्पूजित धैर्य्य- भूमि, | ||
− | |||
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
− | + | '''10 | |
− | + | ||
स्वदेश के शत्रु स्वशत्रु माने, | स्वदेश के शत्रु स्वशत्रु माने, | ||
− | |||
जहाँ सभी ने शर-चाप ताने । | जहाँ सभी ने शर-चाप ताने । | ||
− | |||
जो थी जगत्पूजित शौर्य्य-भूमि, | जो थी जगत्पूजित शौर्य्य-भूमि, | ||
− | |||
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। | ||
− | 11 | + | '''11 |
− | + | ||
− | + | ||
+ | अनेक थे वर्ण तथापि सारे | ||
थे एकताबद्ध जहाँ हमारे | थे एकताबद्ध जहाँ हमारे | ||
− | |||
जो थी जगत्पूजित ऐक्य-भूमि, | जो थी जगत्पूजित ऐक्य-भूमि, | ||
− | |||
वही हमारी यह आर्य भूमि ।। | वही हमारी यह आर्य भूमि ।। | ||
− | 12 | + | '''12 |
थी मातृभूमि-व्रत-भक्ति भारी, | थी मातृभूमि-व्रत-भक्ति भारी, | ||
− | + | जहाँ हुए शुर यशोधिकारी । | |
− | + | ||
− | + | ||
जो थी जगत्पूजित कीर्ति-भूमि, | जो थी जगत्पूजित कीर्ति-भूमि, | ||
− | |||
वही हमारी यह आर्यभूमि ।। | वही हमारी यह आर्यभूमि ।। | ||
− | 13 | + | '''13 |
दिव्यास्त्र विद्या बल, दिव्य यान, | दिव्यास्त्र विद्या बल, दिव्य यान, | ||
− | |||
छाया जहाँ था अति दिव्य ज्ञान । | छाया जहाँ था अति दिव्य ज्ञान । | ||
− | |||
जो थी जगत्पूजित दिव्यभूमि, | जो थी जगत्पूजित दिव्यभूमि, | ||
− | |||
वही हमारी यह आर्यभूमि ।। | वही हमारी यह आर्यभूमि ।। | ||
− | 14 | + | '''14 |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
+ | नए नए देश जहाँ अनेक, | ||
+ | जीत गए थे नित एक एक । | ||
जो थी जगत्पूजित भाग्यभूमि, | जो थी जगत्पूजित भाग्यभूमि, | ||
− | |||
वही हमारी यह आर्यभूमि ।। | वही हमारी यह आर्यभूमि ।। | ||
− | 15 | + | '''15 |
− | + | ||
− | + | ||
+ | विचार ऐसे जब चित्त आते, | ||
विषाद पैदा करते, सताते । | विषाद पैदा करते, सताते । | ||
− | |||
न क्या कभी देव दया करेंगे ? | न क्या कभी देव दया करेंगे ? | ||
− | |||
न क्या हमारे दिन भी फिरेंगे ? | न क्या हमारे दिन भी फिरेंगे ? | ||
− | + | '''’सरस्वती’ के अप्रैल, 1906 के अंक में प्रकाशित | |
+ | </poem> |
10:45, 17 मई 2010 के समय का अवतरण
1
जहाँ हुए व्यास मुनि-प्रधान,
रामादि राजा अति कीर्तिमान।
जो थी जगत्पूजित धन्य-भूमि ,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि ।।
2
जहाँ हुए साधु हा महान्
थे लोग सारे धन-धर्म्मवान्।
जो थी जगत्पूजित धर्म्म-भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
3
जहाँ सभी थे निज धर्म्म धारी,
स्वदेश का भी अभिमान भारी ।
जो थी जगत्पूजित पूज्य-भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
4
हुए प्रजापाल नरेश नाना,
प्रजा जिन्होंने सुत-तुल्य जाना ।
जो थी जगत्पूजित सौख्य- भूमि ,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
5
वीरांगना भारत-भामिली थीं,
वीरप्रसू भी कुल- कामिनी थीं ।
जो थी जगत्पूजित वीर- भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
6
स्वदेश-सेवी जन लक्ष लक्ष,
हुए जहाँ हैं निज-कार्य्य दक्ष ।
जो थी जगत्पूजित कार्य्य-भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
7
स्वदेश-कल्याण सुपुण्य जान,
जहाँ हुए यत्न सदा महान।
जो थी जगत्पूजित पुण्य भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
8
न स्वार्थ का लेन जरा कहीं था,
देशार्थ का त्याग कहीं नहीं था।
जो थी जगत्पूजित श्रेष्ठ-भुमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
9
कोई कभी धीर न छोड़ता था,
न मृत्यु से भी मुँह मोड़ता था।
जो थी जगत्पूजित धैर्य्य- भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
10
स्वदेश के शत्रु स्वशत्रु माने,
जहाँ सभी ने शर-चाप ताने ।
जो थी जगत्पूजित शौर्य्य-भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
11
अनेक थे वर्ण तथापि सारे
थे एकताबद्ध जहाँ हमारे
जो थी जगत्पूजित ऐक्य-भूमि,
वही हमारी यह आर्य भूमि ।।
12
थी मातृभूमि-व्रत-भक्ति भारी,
जहाँ हुए शुर यशोधिकारी ।
जो थी जगत्पूजित कीर्ति-भूमि,
वही हमारी यह आर्यभूमि ।।
13
दिव्यास्त्र विद्या बल, दिव्य यान,
छाया जहाँ था अति दिव्य ज्ञान ।
जो थी जगत्पूजित दिव्यभूमि,
वही हमारी यह आर्यभूमि ।।
14
नए नए देश जहाँ अनेक,
जीत गए थे नित एक एक ।
जो थी जगत्पूजित भाग्यभूमि,
वही हमारी यह आर्यभूमि ।।
15
विचार ऐसे जब चित्त आते,
विषाद पैदा करते, सताते ।
न क्या कभी देव दया करेंगे ?
न क्या हमारे दिन भी फिरेंगे ?
’सरस्वती’ के अप्रैल, 1906 के अंक में प्रकाशित