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"तुम गा दो / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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तुम गा दो, मेरे गान अमर हो जाए!
 
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मेरे वर्ण-वर्ण विश्रृंखल,
 
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गूँज-गूँजकर मिटने वाले
 
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मैंने गीत बनाए;
 
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कूक हो गई हूक गगन की
 
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कोकिल के कंठों पर,
 
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तुम गा दो, मेरे गान अमर हो जाए!
 
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जब-जब जग ने कर फैलाए,
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मैंने कोष लुटाया,
 
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रंक हुआ मैं निज निधि खोकर
 
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जगती ने क्‍या पाया!
 
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भेंट न जिसमें मैं कुछ खोऊँ
 
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पर तुम सब कुछ पाओ,
 
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तुम ले लो, मेरा दान अमर हो जाए!
 
तुम ले लो, मेरा दान अमर हो जाए!
 
 
तुम गा दो, मेरे गान अमर हो जाए!
 
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सुंदर और असुंदर जग में
 
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मैंने क्‍या सराहा,
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इतनी ममतामय दुनिया में
 
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मैं केवल अनचाहा;
 
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देखूँ अब किसकी रुकती है
 
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आ मुझपर अभिलाषा,
 
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तुम रख लो, मेरा मान अमर हो जाए!
 
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तुम गा दो, मेरे गान अमर हो जाए!
 
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दुख से जिवन बीता फिर भी
 
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जीवन की अंतिम घड़ियों में
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भी तुमसे यह कहता,
 
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सुख की एक साँस पर होता
 
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है अमरत्‍व निछावर,
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तुम छू दो, मेरा प्राण अमर हो जाए!
 
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तुम गा दो, मेरे गान अमर हो जाए!
 
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21:45, 25 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

तुम गा दो, मेरे गान अमर हो जाए!
मेरे वर्ण-वर्ण विश्रृंखल,
चरण-चरण भरमाए,
गूँज-गूँजकर मिटने वाले
मैंने गीत बनाए;
कूक हो गई हूक गगन की
कोकिल के कंठों पर,
तुम गा दो, मेरे गान अमर हो जाए!

जब-जब जग ने कर फैलाए,
मैंने कोष लुटाया,
रंक हुआ मैं निज निधि खोकर
जगती ने क्‍या पाया!
भेंट न जिसमें मैं कुछ खोऊँ
पर तुम सब कुछ पाओ,
तुम ले लो, मेरा दान अमर हो जाए!
तुम गा दो, मेरे गान अमर हो जाए!

सुंदर और असुंदर जग में
मैंने क्‍या न सराहा,
इतनी ममतामय दुनिया में
मैं केवल अनचाहा;
देखूँ अब किसकी रुकती है
आ मुझपर अभिलाषा,
तुम रख लो, मेरा मान अमर हो जाए!
तुम गा दो, मेरे गान अमर हो जाए!

दुख से जिवन बीता फिर भी
शेष अभी कुछ रहता,
जीवन की अंतिम घड़ियों में
भी तुमसे यह कहता,
सुख की एक साँस पर होता
है अमरत्‍व निछावर,
तुम छू दो, मेरा प्राण अमर हो जाए!
तुम गा दो, मेरे गान अमर हो जाए!