"पानी / अविनाश" के अवतरणों में अंतर
Avinashonly (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: अब पीया नहीं जाता पानी मन बेमन रह जाता है प्यास बाक़ी आत्मा अतृ...) |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=अविनाश | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <Poem> | ||
अब पीया नहीं जाता पानी | अब पीया नहीं जाता पानी | ||
मन बेमन रह जाता है | मन बेमन रह जाता है | ||
पंक्ति 10: | पंक्ति 17: | ||
गर्मी में घर लौटना अच्छा लगता था | गर्मी में घर लौटना अच्छा लगता था | ||
बीच-बीच में उठ कर फ्रिज से बोतल निकालना | बीच-बीच में उठ कर फ्रिज से बोतल निकालना | ||
− | दो | + | दो घूँट गले में डाल कर फिर बिस्तर पर लेटना |
किताब पढ़ना छत की ओर देखना कुछ सोचना | किताब पढ़ना छत की ओर देखना कुछ सोचना | ||
− | |||
हमने पानी की यात्रा एक गिलास, एक लोटे से शुरू की थी | हमने पानी की यात्रा एक गिलास, एक लोटे से शुरू की थी | ||
− | |||
+ | आज अपना फ्रिज है फ्रिज में ठंडा होता पानी अपनी मिल्कियत | ||
मौसम बदल रहा है | मौसम बदल रहा है | ||
+ | |||
ठंडा पानी पीया नहीं जाता | ठंडा पानी पीया नहीं जाता | ||
कम ठंडा भी गले से उतरता नहीं | कम ठंडा भी गले से उतरता नहीं | ||
ज़रूरत भर ठंडा पानी जब तक कहीं से आये | ज़रूरत भर ठंडा पानी जब तक कहीं से आये | ||
प्यास धक्का देकर कहीं भाग जाती है | प्यास धक्का देकर कहीं भाग जाती है | ||
− | |||
कैसे लोग होते हैं वे | कैसे लोग होते हैं वे | ||
+ | |||
जिनकी प्यास जैसे ही लगती है बुझ जाती है! | जिनकी प्यास जैसे ही लगती है बुझ जाती है! | ||
− | सचिवालय का किरानी पीने भर ठंडा पानी | + | सचिवालय का किरानी पीने भर ठंडा पानी कहाँ से मंगवाता है! |
क्या दिल्ली में मिलता है पानी! | क्या दिल्ली में मिलता है पानी! | ||
− | यमुना किनारे बसे लोग तो पानी के नाम से ही | + | यमुना किनारे बसे लोग तो पानी के नाम से ही काँपते होंगे |
सुना है प्रधानमंत्री के लिए परदेस से आता है पानी | सुना है प्रधानमंत्री के लिए परदेस से आता है पानी | ||
− | थक कर प्यास से बेकल घर | + | थक कर प्यास से बेकल घर पहुँच कर भी |
− | पानी भरा हुआ गिलास मेरी हथेलियों के बीच | + | पानी भरा हुआ गिलास मेरी हथेलियों के बीच फँसा है |
बहुत ठंडा है बहुत गर्म | बहुत ठंडा है बहुत गर्म | ||
हम साधारण आदमी का सफ़र फिर से शुरू करना चाहते हैं | हम साधारण आदमी का सफ़र फिर से शुरू करना चाहते हैं | ||
नगरपालिका के टैंकर के आगे कतार में खड़े होना चाहते हैं | नगरपालिका के टैंकर के आगे कतार में खड़े होना चाहते हैं | ||
− | बस से उतर कर पारचून की दुकानों में सजी बंद बोतलों से | + | बस से उतर कर पारचून की दुकानों में सजी बंद बोतलों से मुँह चुराना चाहते हैं |
− | सड़क पर ठेले का पानी मिलता है | + | सड़क पर ठेले का पानी मिलता है सिर्फ़ पचास पैसे में |
एक के सिक्के में दो गिलास | एक के सिक्के में दो गिलास | ||
पंक्ति 45: | पंक्ति 52: | ||
मुझे रुलाई आती है | मुझे रुलाई आती है | ||
मुझे ज़ोर की प्यास सताती है! | मुझे ज़ोर की प्यास सताती है! | ||
+ | </poem> |
15:07, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
अब पीया नहीं जाता पानी
मन बेमन रह जाता है
प्यास बाक़ी
आत्मा अतृप्त
सन चौरासी में पहली बार देखा था फ्रिज
सन चौरानबे में पीया था पहली बार उसका पानी
दो हज़ार चार में अपना फ्रिज था
गर्मी में घर लौटना अच्छा लगता था
बीच-बीच में उठ कर फ्रिज से बोतल निकालना
दो घूँट गले में डाल कर फिर बिस्तर पर लेटना
किताब पढ़ना छत की ओर देखना कुछ सोचना
हमने पानी की यात्रा एक गिलास, एक लोटे से शुरू की थी
आज अपना फ्रिज है फ्रिज में ठंडा होता पानी अपनी मिल्कियत
मौसम बदल रहा है
ठंडा पानी पीया नहीं जाता
कम ठंडा भी गले से उतरता नहीं
ज़रूरत भर ठंडा पानी जब तक कहीं से आये
प्यास धक्का देकर कहीं भाग जाती है
कैसे लोग होते हैं वे
जिनकी प्यास जैसे ही लगती है बुझ जाती है!
सचिवालय का किरानी पीने भर ठंडा पानी कहाँ से मंगवाता है!
क्या दिल्ली में मिलता है पानी!
यमुना किनारे बसे लोग तो पानी के नाम से ही काँपते होंगे
सुना है प्रधानमंत्री के लिए परदेस से आता है पानी
थक कर प्यास से बेकल घर पहुँच कर भी
पानी भरा हुआ गिलास मेरी हथेलियों के बीच फँसा है
बहुत ठंडा है बहुत गर्म
हम साधारण आदमी का सफ़र फिर से शुरू करना चाहते हैं
नगरपालिका के टैंकर के आगे कतार में खड़े होना चाहते हैं
बस से उतर कर पारचून की दुकानों में सजी बंद बोतलों से मुँह चुराना चाहते हैं
सड़क पर ठेले का पानी मिलता है सिर्फ़ पचास पैसे में
एक के सिक्के में दो गिलास
पर इसमें मिट्टी की बास आती है
गले में खुश्की जम जाती है
मुझे रुलाई आती है
मुझे ज़ोर की प्यास सताती है!