"जागृति / दे दी हमे आजादी बिना" के अवतरणों में अंतर
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दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल | दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल | ||
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | ||
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आंधी में भी जलती रही गांधी तेरी मशाल | आंधी में भी जलती रही गांधी तेरी मशाल | ||
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | ||
− | धरती पे लड़ी तूने अजब | + | धरती पे लड़ी तूने अजब ढंग की लड़ाई |
दागी न कहीं तोप न बंदूक चलाई | दागी न कहीं तोप न बंदूक चलाई | ||
दुश्मन के किले पर भी न की तूने चढ़ाई | दुश्मन के किले पर भी न की तूने चढ़ाई | ||
वाह रे फकीर खूब करामात दिखाई | वाह रे फकीर खूब करामात दिखाई | ||
− | |||
चुटकी में दुश्मनों को दिया देश से निकाल | चुटकी में दुश्मनों को दिया देश से निकाल | ||
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | ||
− | रघुपति राघव | + | रघुपति राघव राजा राम |
− | शतरंज बिछा कर | + | शतरंज बिछा कर यहाँ बैठा था ज़माना |
लगता था कि मुश्किल है फिरंगी को हराना | लगता था कि मुश्किल है फिरंगी को हराना | ||
टक्कर थी बड़े ज़ोर की दुश्मन भी था दाना | टक्कर थी बड़े ज़ोर की दुश्मन भी था दाना | ||
पर तू भी था बापू बड़ा उस्ताद पुराना | पर तू भी था बापू बड़ा उस्ताद पुराना | ||
− | |||
मारा वो कस के दांव कि उल्टी सभी की चाल | मारा वो कस के दांव कि उल्टी सभी की चाल | ||
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | ||
पंक्ति 27: | पंक्ति 30: | ||
जब जब तेरा बिगुल बजा जवान चल पड़े | जब जब तेरा बिगुल बजा जवान चल पड़े | ||
मजदूर चल पड़े थे और किसान चल पड़े | मजदूर चल पड़े थे और किसान चल पड़े | ||
− | हिन्दू | + | हिन्दू मुसलमान सिख पठान चल पड़े |
कदमों पे तेरे कोटि कोटि प्राण चल पड़े | कदमों पे तेरे कोटि कोटि प्राण चल पड़े | ||
− | |||
फूलों की सेज छोड़ के दौड़े जवाहरलाल | फूलों की सेज छोड़ के दौड़े जवाहरलाल | ||
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | ||
पंक्ति 38: | पंक्ति 40: | ||
वैसे तो देखने में थी हस्ती तेरी छोटी | वैसे तो देखने में थी हस्ती तेरी छोटी | ||
लेकिन तुझे झुकती थी हिमालय की भी चोटी | लेकिन तुझे झुकती थी हिमालय की भी चोटी | ||
− | + | दुनिया में तू बेजोड़ था इंसान बेमिसाल | |
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साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | ||
रघुपति राघव रजा राम | रघुपति राघव रजा राम | ||
पंक्ति 47: | पंक्ति 48: | ||
मांगा न कोई तख्त न तो ताज ही लिया | मांगा न कोई तख्त न तो ताज ही लिया | ||
अमृत दिया सभी को मगर खुद ज़हर पिया | अमृत दिया सभी को मगर खुद ज़हर पिया | ||
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जिस दिन तेरी चिता जली रोया था महाकाल | जिस दिन तेरी चिता जली रोया था महाकाल | ||
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | ||
रघुपति राघव रजा राम | रघुपति राघव रजा राम | ||
+ | </poem> |
20:18, 19 मार्च 2010 के समय का अवतरण
रचनाकार: पंडित प्रदीप शर्मा |
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
आंधी में भी जलती रही गांधी तेरी मशाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
धरती पे लड़ी तूने अजब ढंग की लड़ाई
दागी न कहीं तोप न बंदूक चलाई
दुश्मन के किले पर भी न की तूने चढ़ाई
वाह रे फकीर खूब करामात दिखाई
चुटकी में दुश्मनों को दिया देश से निकाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
रघुपति राघव राजा राम
शतरंज बिछा कर यहाँ बैठा था ज़माना
लगता था कि मुश्किल है फिरंगी को हराना
टक्कर थी बड़े ज़ोर की दुश्मन भी था दाना
पर तू भी था बापू बड़ा उस्ताद पुराना
मारा वो कस के दांव कि उल्टी सभी की चाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
रघुपति राघव रजा राम
जब जब तेरा बिगुल बजा जवान चल पड़े
मजदूर चल पड़े थे और किसान चल पड़े
हिन्दू मुसलमान सिख पठान चल पड़े
कदमों पे तेरे कोटि कोटि प्राण चल पड़े
फूलों की सेज छोड़ के दौड़े जवाहरलाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
रघुपति राघव रजा राम
मन में थी अहिंसा की लगन तन पे लंगोटी
लाखों में घूमता था लिये सत्य की सोंटी
वैसे तो देखने में थी हस्ती तेरी छोटी
लेकिन तुझे झुकती थी हिमालय की भी चोटी
दुनिया में तू बेजोड़ था इंसान बेमिसाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
रघुपति राघव रजा राम
जग में कोई जिया है तो बापू तू ही जिया
तूने वतन की राह में सबकुछ लुटा दिया
मांगा न कोई तख्त न तो ताज ही लिया
अमृत दिया सभी को मगर खुद ज़हर पिया
जिस दिन तेरी चिता जली रोया था महाकाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
रघुपति राघव रजा राम