"क्षणिकायें / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर
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तारे रात भर खोदते रहे कब्र | तारे रात भर खोदते रहे कब्र | ||
हवाओं ने भी छाती पीटी | हवाओं ने भी छाती पीटी | ||
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मौत न हुई... | मौत न हुई... | ||
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चाँद काँटों की फुलकारी ओढे़ | चाँद काँटों की फुलकारी ओढे़ | ||
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'''टीस''' | '''टीस''' | ||
फिर सिसक उठी है टीस | फिर सिसक उठी है टीस | ||
तेरे झुलसे शब्द | तेरे झुलसे शब्द | ||
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जाने और कितना | जाने और कितना | ||
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'''वज़ह''' | '''वज़ह''' | ||
कुछ खामोशी को था स्वाभिमान | कुछ खामोशी को था स्वाभिमान | ||
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दोनों का परस्पर ये मौन | दोनों का परस्पर ये मौन | ||
दूरियों की वज़ह | दूरियों की वज़ह | ||
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'''गिला''' | '''गिला''' | ||
गिला इस बात का न था | गिला इस बात का न था | ||
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चंद रोज हँस पडे़ थे | चंद रोज हँस पडे़ थे | ||
खिलखिलाकर | खिलखिलाकर | ||
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'''किस उम्मीद में...''' | '''किस उम्मीद में...''' | ||
किस उम्मीद में जिये जा रही है शमां...? | किस उम्मीद में जिये जा रही है शमां...? | ||
− | अब तो | + | अब तो रोशनी भी बुझने लगी है तेरी |
दस्तक दे रहे हैं अंधेरे किवाड़ों पर | दस्तक दे रहे हैं अंधेरे किवाड़ों पर | ||
और तू है के हँस-हँस के जले जा रही है... | और तू है के हँस-हँस के जले जा रही है... |
11:48, 23 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
1
ज़ख्म
रात आसमां ने आंगन में अर्थी सजाई
तारे रात भर खोदते रहे कब्र
हवाओं ने भी छाती पीटी
पर मेरे ज़ख्मों की
मौत न हुई...
2
दर्द
चाँद काँटों की फुलकारी ओढे़
रोता रहा रातभर
सहर फूलों के आगोश में
अंगडा़ई लेता रहा...
3
टीस
फिर सिसक उठी है टीस
तेरे झुलसे शब्द
ज़ख्मों को
जाने और कितना
रुलाएंगे...
4
शोक
रात भर आसमां के आंगन में
रही मरघट सी खामोश
चिता के धुएँ से
तारे शोकाकुल रहे
कल फिर इक हँसी की
मौत हुई।
5
सन्नाटा
सीढ़ियों पर
बैठा था सन्नाटा
दो पल साथ क्या चला
हमें अपनी जागीर समझ बैठा...
6
वज़ह
कुछ खामोशी को था स्वाभिमान
कुछ लफ्ज़ों को अपना गरूर
दोनों का परस्पर ये मौन
दूरियों की वज़ह
बनता रहा...
7
गिला
गिला इस बात का न था
कि शमां ताउम्र तन्हा जलती रही
गिला इस बात का रहा के
पतिंगा कोई जलने आया ही नहीं...
8
दूरियाँ
फिर कहीं दूर हैं वो लफ्ज़
जिसकी आगोश में
चंद रोज हँस पडे़ थे
खिलखिलाकर
ज़ख्म...
9
तलाश
एक सूनी सी पगडंडी
तुम्हारे सीने तक
तलाशती है रास्ता
एक गुमशुदा व्यक्ति की तरह...
10
तुम ही कह दो...
तुम ही कह दो
अपने आंगन की हवाओं से
बदल लें रास्ता
मेरे आंगन के फूल
बडे़ संवेदनशील हैं
कहीं टूटकर बिखर न जायें...
11
किस उम्मीद में...
किस उम्मीद में जिये जा रही है शमां...?
अब तो रोशनी भी बुझने लगी है तेरी
दस्तक दे रहे हैं अंधेरे किवाड़ों पर
और तू है के हँस-हँस के जले जा रही है...
12
सुनहरा कफ़न
ऐ मौत !
आ मुझे चीरती हुई निकल जा
देख! मैंने सी लिया है
सितारों जडा़
सुनहरा कफ़न