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16:51, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

हम-तुम
छोड़ आये हैं एक दुनिया
हमारे पास अब
अपने-अपने चाकू हैं
खुरचते हैं जिनसे
अपनी छोटी-सी दुनिया को

लपकते हैं
गरजते हैं
छान-छानकर
अपनी ज़िंदगी में पड़े कंकड़ों को

क्या इसीलिए छोड़ी थी वह दुनिया
क्या इतनी थोड़ी है
यह दुनिया
कि बार-बार लौटते हैं
उसी खिड़की के नीचे
जिसे साथ-साथ
बंद कर आये थे हम