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"भरोसो जाहि दूसरो सो करो / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर

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भरोसो जाहि दूसरो सो करो।  
 
मोको तो रामको नाम कलपतरु, कलिकल्यान फरो॥१॥
 
मोको तो रामको नाम कलपतरु, कलिकल्यान फरो॥१॥
 
करम उपासन ग्यान बेदमत सो जब भाँति खरो।
 
करम उपासन ग्यान बेदमत सो जब भाँति खरो।
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संकर साखि जो राखि कहउँ कछु, तौ जरि जीह गरो।
 
संकर साखि जो राखि कहउँ कछु, तौ जरि जीह गरो।
 
अपनो भलो रामनामहिं ते, तुलसिहि समुझि परो॥६॥
 
अपनो भलो रामनामहिं ते, तुलसिहि समुझि परो॥६॥
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22:44, 26 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

भरोसो जाहि दूसरो सो करो।
मोको तो रामको नाम कलपतरु, कलिकल्यान फरो॥१॥
करम उपासन ग्यान बेदमत सो जब भाँति खरो।
मोहिं तो सावनके अंधहि ज्यों, सूझत हरो-हरो॥२॥
चाटत रहेउँ स्वान पातरि ज्यों कबहुँ न पेट भरो।
सो हौं सुमिरत नाम-सुधारस, पेखत परुसि धरो॥३॥
स्वारथ औ परमारथहूको, नहिं कुञ्जरो नरो।
सुनियत सेतु पयोधि पषनन्हि, करि कपि कटक तरो॥४॥
प्रीति प्रतीति जहाँ जाकी तहॅं, ताको काज सरो।
मेर तो माय-बाप दोउ आखर, हौं सिसु-अरनि अरो॥५॥
संकर साखि जो राखि कहउँ कछु, तौ जरि जीह गरो।
अपनो भलो रामनामहिं ते, तुलसिहि समुझि परो॥६॥