भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिल भी वो है, धड़कन भी वो / विज्ञान व्रत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विज्ञान व्रत |संग्रह= }} <Poem> दिल भी वो है, धड़कन भी व...)
 
 
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
  
 
प्रश्नों का हल भी लगता है
 
प्रश्नों का हल भी लगता है
और जटिल्सी उलझन भी वो
+
और जटिल-सी उलझन भी वो
 
</poem>
 
</poem>

18:48, 12 मार्च 2009 के समय का अवतरण

दिल भी वो है, धड़कन भी वो
चेहरा भी वो, दरपन भी वो

जीवन तो पहले भी था
अब जीवन का दर्शन भी वो

आज़ादी की परिभाषा भी
जनम-जनम का बंधन भी वो

बिंदी की ख़ामोशी भी है
खन-खन करता कंगन भी वो

प्रश्नों का हल भी लगता है
और जटिल-सी उलझन भी वो