"मेरी रचना के अर्थ / रमानाथ अवस्थी" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=रमानाथ अवस्थी | |रचनाकार=रमानाथ अवस्थी | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatGeet}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं | ||
+ | जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना । | ||
+ | मैं गीत लुटाता हूँ उन लोगों पर | ||
+ | दुनिया में जिनका कोई आधार नहीं | ||
+ | मैं आँख मिलाता हूँ उन आँखों से | ||
+ | जिनका कोई भी पहरेदार नहीं । | ||
− | + | आँखों की भाषाएँ तो अनगिन हैं | |
− | जो भी | + | जो भी सुंदर हो समझा देना । |
− | + | पूजा करता हूँ उस कमज़ोरी की | |
− | दुनिया | + | जो जीने को मज़बूर कर रही है |
− | + | मन ऊब रहा है अब उस दुनिया से | |
− | + | जो मुझको तुमसे दूर कर रही है । | |
− | + | दूरी का दुख बढ़ता ही जाता है | |
− | जो भी | + | जो भी तुमसे घट जाए घटा लेना । |
− | + | कहता है मुझसे उड़ता हुआ धुआँ | |
− | + | रुकने का नाम न ले तू उड़ता जा | |
− | + | संकेत कर रहा नभ वाला घन | |
− | + | प्यासे प्राणों पर मुझ सा गलता जा । | |
− | + | पर मैं खुद ही प्यासा हूँ मरुथल-सा | |
− | जो | + | यह बात समंदर को समझा देना । |
+ | चाँदनी चढ़ाता हूँ उन चरणों पर | ||
+ | जो अपनी राहें आप बनाते हैं | ||
+ | आवाज़ लगाता हूँ उन गीतों को | ||
+ | जिनको मधुवन में भौंरे गाते हैं । | ||
− | + | मधुवन में सोए गीत हज़ारों हैं | |
− | + | जो भी तुमसे जग जाएँ जगा लेना । | |
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | जो भी तुमसे जग जाएँ जगा | + |
21:22, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं
जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना ।
मैं गीत लुटाता हूँ उन लोगों पर
दुनिया में जिनका कोई आधार नहीं
मैं आँख मिलाता हूँ उन आँखों से
जिनका कोई भी पहरेदार नहीं ।
आँखों की भाषाएँ तो अनगिन हैं
जो भी सुंदर हो समझा देना ।
पूजा करता हूँ उस कमज़ोरी की
जो जीने को मज़बूर कर रही है
मन ऊब रहा है अब उस दुनिया से
जो मुझको तुमसे दूर कर रही है ।
दूरी का दुख बढ़ता ही जाता है
जो भी तुमसे घट जाए घटा लेना ।
कहता है मुझसे उड़ता हुआ धुआँ
रुकने का नाम न ले तू उड़ता जा
संकेत कर रहा नभ वाला घन
प्यासे प्राणों पर मुझ सा गलता जा ।
पर मैं खुद ही प्यासा हूँ मरुथल-सा
यह बात समंदर को समझा देना ।
चाँदनी चढ़ाता हूँ उन चरणों पर
जो अपनी राहें आप बनाते हैं
आवाज़ लगाता हूँ उन गीतों को
जिनको मधुवन में भौंरे गाते हैं ।
मधुवन में सोए गीत हज़ारों हैं
जो भी तुमसे जग जाएँ जगा लेना ।