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"मेरी रचना के अर्थ / रमानाथ अवस्थी" के अवतरणों में अंतर

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मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं
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जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना ।
  
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मैं गीत लुटाता हूँ उन लोगों पर
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दुनिया में जिनका कोई आधार नहीं
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जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना।<br><br>
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कहता है मुझसे उड़ता हुआ धुआँ
जो जीने को मजबूर कर रही है<br>
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रुकने का नाम न ले तू उड़ता जा
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दूरी का दुख बढ़ता ही जाता है<br>
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पर मैं खुद ही प्यासा हूँ मरुथल-सा
जो भी तुमसे घट जाए घटा लेना।<br><br>
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यह बात समंदर को समझा देना ।
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चाँदनी चढ़ाता हूँ उन चरणों पर
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जो अपनी राहें आप बनाते हैं
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आवाज़ लगाता हूँ उन गीतों को
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जिनको मधुवन में भौंरे गाते हैं ।
  
कहता है मुझसे उड़ता हुआ धुआँ<br>
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मधुवन में सोए गीत हज़ारों हैं
रुकने का नाम न ले तू उड़ता जा<br>
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जो भी तुमसे जग जाएँ जगा लेना ।
संकेत कर रहा नभ वाला घन<br>
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प्यासे प्राणों पर मुझ सा गलता जा।<br><br>
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यह बात समंदर को समझा देना।<br><br>
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जिनको मधुवन में भौंरे गाते हैं।<br><br>
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मधुवन में सोये गीत हजारों हैं<br>
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जो भी तुमसे जग जाएँ जगा लेना।
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21:22, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

मेरी रचना के अर्थ बहुत से हैं
जो भी तुमसे लग जाए लगा लेना ।

मैं गीत लुटाता हूँ उन लोगों पर
दुनिया में जिनका कोई आधार नहीं
मैं आँख मिलाता हूँ उन आँखों से
जिनका कोई भी पहरेदार नहीं ।

आँखों की भाषाएँ तो अनगिन हैं
जो भी सुंदर हो समझा देना ।

पूजा करता हूँ उस कमज़ोरी की
जो जीने को मज़बूर कर रही है
मन ऊब रहा है अब उस दुनिया से
जो मुझको तुमसे दूर कर रही है ।

दूरी का दुख बढ़ता ही जाता है
जो भी तुमसे घट जाए घटा लेना ।

कहता है मुझसे उड़ता हुआ धुआँ
रुकने का नाम न ले तू उड़ता जा
संकेत कर रहा नभ वाला घन
प्यासे प्राणों पर मुझ सा गलता जा ।

पर मैं खुद ही प्यासा हूँ मरुथल-सा
यह बात समंदर को समझा देना ।
चाँदनी चढ़ाता हूँ उन चरणों पर
जो अपनी राहें आप बनाते हैं
आवाज़ लगाता हूँ उन गीतों को
जिनको मधुवन में भौंरे गाते हैं ।

मधुवन में सोए गीत हज़ारों हैं
जो भी तुमसे जग जाएँ जगा लेना ।