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कई ख़राब कविताओं को पढ़ने के बाद | कई ख़राब कविताओं को पढ़ने के बाद |
21:59, 2 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
कई ख़राब कविताओं को पढ़ने के बाद
जब आप यह कविता पढ़ रहे हों
तब तक शायद आप मन बना चुके हों कि
अब और कविताएँ पढ़ना व्यर्थ है
इस कविता के शब्दों से गुज़रते वक़्त
संभव है आपको लगे कि
यह अपने कीमती समय को नष्ट करना है
यह कविता भी ऐसा कोई दावा नहीं करती कि
आपको अपनी भाषा को बचाए रखने के लिए
कविता ही पढ़ना चाहिए
सवाल आपके बचे हुए भरोसे का है
जिसे यहाँ
यह कविता टटोल रही है इस वक़्त ।