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एक दिन अकस्मात
एक पूराने पुराने मित्र से हो गई मुलाकात
हमने कहा-"नमस्कार।"
वे बोले-"ग़ज़ब हो गया यार!
फटा भाग्य सी रहे हैं
बिना चीनी की चाय पी रहे हैं।"
हमने पूछा-"डायबिटीज़ है कहाँक्या?"
वे बोले-"हमारे ऐसे भाग्य कहाँ!
डायबिटीज़ जैसे राजरोग
हम जैसे कंगालो को तो
केवल बच्चे होते हैं
तुम्हारे कितने हैं?"
हमने कहा-"हमें तो डायबिटीज़ है
तुम क्या जानो
बबूल में लटके जा रहे हैं
सात कन्याएँ न होतीं
तो आपकी तरह खाते -पीते
मौज उड़ाते।
एक दिन डायबिटीज़ के पेशेंट बन जाने
लक्ष्मी को उंगली पर नचाते
और लोगों की आँखो में धूल झोककर
इंकमटैक्स चुराते है!
मगर यहाँ तो इंकम ही नहीं है
तो टैक्स क्या चुराएंगे
व्यापारी सामान खा रहा है
ठेकेदार पुल और मकान खा रहा है
धर्मात्मा दान खा रहा है
बेईमान ईमान खा रहा है
और जिसे कुछ नहीं मिला
वो आपके काँच कान खा रहा है।"
हमने कहा-"यार खूब बोलते हो।"
वे बोले-"यहीं बोल रहा हूँ
घर पर तो लड़कितों लड़कियों की माँ बोलती है
सिंहनी की तरह छाती पर डोलती है
अपनी किस्मत क़िस्मत में तो
फनफनाती हुई बीबी
और दनदनाती हुई औलाद है
कि बकरा एक झटके में हलाल होता है
और हम धीरे-धीरे हुए जा रहे हैं।
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