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सुनो, सुनो, | सुनो, सुनो, | ||
अवधूतो! सुनो, | अवधूतो! सुनो, | ||
साधुओं! सुनो, | साधुओं! सुनो, | ||
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कबीर ने आज फिर | कबीर ने आज फिर | ||
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हाथी मार बगल में देन्हें | हाथी मार बगल में देन्हें | ||
ऊँट लिए लटकाय! | ऊँट लिए लटकाय! | ||
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नहीं समझे? | नहीं समझे? | ||
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कुरते-पाजामे-धोती-टोपी वाले मर्द! | कुरते-पाजामे-धोती-टोपी वाले मर्द! | ||
वे उन्हें उनके हक़ | वे उन्हें उनके हक़ | ||
− | दिलवाकर ही | + | दिलवाकर ही रहेंगे। |
− | + | राजनीति में सब कुछ सम्भव है। | |
− | राजनीति में सब कुछ सम्भव | + | |
यहाँ घोड़े और घास में | यहाँ घोड़े और घास में | ||
− | यारी हो सकती | + | यारी हो सकती है। |
− | कुर्सी कुछ भी करा सकती | + | कुर्सी कुछ भी करा सकती है। |
-कुर्सी महा ठगिनी हम जानी! | -कुर्सी महा ठगिनी हम जानी! | ||
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कुर्सी का ही तो प्रताप है | कुर्सी का ही तो प्रताप है | ||
कि शेर हिरनियों की | कि शेर हिरनियों की | ||
हिफाजत कर रहे हैं | हिफाजत कर रहे हैं | ||
− | (मर्द औरतों की वकालत कर रहे हैं) | + | (मर्द औरतों की वकालत कर रहे हैं)। |
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सुनो, सुनो, | सुनो, सुनो, | ||
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सिर्फ़ औरतें; | सिर्फ़ औरतें; | ||
मर्दों की खातिर औरतें! | मर्दों की खातिर औरतें! | ||
− | |||
रूप कुंवर, शाह बानो, | रूप कुंवर, शाह बानो, | ||
लता, अमीना, भंवरी बाई, | लता, अमीना, भंवरी बाई, | ||
− | माया त्यागी, फूलन | + | माया त्यागी, फूलन..., |
श्रीमती अ, | श्रीमती अ, | ||
मैडम ब, | मैडम ब, | ||
− | या बेगम स | + | या बेगम स... |
नाम कुछ भी हो, | नाम कुछ भी हो, | ||
औरतें सिर्फ़ औरतें हैं | औरतें सिर्फ़ औरतें हैं | ||
मर्दों की दुनिया में. | मर्दों की दुनिया में. | ||
− | औरतें | + | औरतें... चुडै़लें...! |
− | चुडै़लें | + | चुडै़लें...औरतें...! |
− | + | ||
सुनो, सुनो, | सुनो, सुनो, | ||
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धरती कूट रहे हैं, | धरती कूट रहे हैं, | ||
आसमान फाड़ रहे हैं. | आसमान फाड़ रहे हैं. | ||
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मानते हैं - | मानते हैं - | ||
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धर्म और मजहब में ! | धर्म और मजहब में ! | ||
− | + | और वे चीख़़ रहे हैं: | |
− | और वे | + | |
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औरतें एक नहीं हैं! | औरतें एक नहीं हैं! | ||
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कैसे हो सकती हैं औरतें एक, | कैसे हो सकती हैं औरतें एक, | ||
हमसे पूछे बिना? | हमसे पूछे बिना? | ||
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सुनो, सुनो, | सुनो, सुनो, | ||
पंक्ति 142: | पंक्ति 132: | ||
नाच रही हैं चुडै़लें | नाच रही हैं चुडै़लें | ||
हँसती हुईं, रोती हुईं , गाती हुईं : | हँसती हुईं, रोती हुईं , गाती हुईं : | ||
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दुनिया भर की औरतों , एक हो ! | दुनिया भर की औरतों , एक हो ! | ||
पंक्ति 148: | पंक्ति 137: | ||
खोने को - | खोने को - | ||
सिवा मर्दों की गुलामी के !! | सिवा मर्दों की गुलामी के !! | ||
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20:18, 24 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
सुनो, सुनो,
अवधूतो! सुनो,
साधुओं! सुनो,
कबीर ने आज फिर
एक अचंभा देखा है
आज फिर पानी में आग लगी है
आज फिर चींटी पहाड़ चढ़ रही है
नौ मन काजर लाय,
हाथी मार बगल में देन्हें
ऊँट लिए लटकाय!
नहीं समझे?
अरे, देखते नहीं अकल के अंधो!
औरतों की वकालत के लिए
मर्द निकले हैं,
कुरते-पाजामे-धोती-टोपी वाले मर्द!
वे उन्हें उनके हक़
दिलवाकर ही रहेंगे।
राजनीति में सब कुछ सम्भव है।
यहाँ घोड़े और घास में
यारी हो सकती है।
कुर्सी कुछ भी करा सकती है।
-कुर्सी महा ठगिनी हम जानी!
कुर्सी का ही तो प्रताप है
कि शेर हिरनियों की
हिफाजत कर रहे हैं
(मर्द औरतों की वकालत कर रहे हैं)।
सुनो, सुनो,
अवधूतो! सुनो,
साधुओं! सुनो,
इन चीखों को सुनो,
इतिहास के खंडहरों को चीरकर
आती हुई ये चीखें औरतों की हैं,
मर्दों की सताई हुई
औरतों की कलपती हुई आत्माएं
नाचती हैं चुडैल बनकर,
हाहाकार मचाती हैं,
चीखती चिल्लाती हैं,
दुनिया की तरफ़
दोनों हाथ फैलाकर
बार बार बताती हैं :
हम चुडै़लें हैं,
हम औरतें थीं;
हमारी भी जात-बिरादरी थी,
हममें भी ऊँच-नीच थी,
हमारे भी धरम-ईमान थे,
लकिन मर्दों ने
जब जब हमें घरों से निकाला,
हंटरों से पीटा
ठोकरों से मारा,
आग में झोंका,
पहियों तले रौंदा,
खेतों में फाड़ा,
दफ्तरों में उघाड़ा,
बिस्तर में भोगा,
बाज़ार में बेचा,
सडकों पर नंगे घुमाया,
मगरमच्छों को खिलाया,
तंदूर में पकाया,
तब तब हमने जाना :
हमारी कोई
जात-बिरादरी न थी;
हममें कोंई
ऊँच-नीच न थी;
हमारे कोई
धरम-ईमान न थे;
हम औरतें थीं,
सिर्फ़ औरतें;
मर्दों की खातिर औरतें!
रूप कुंवर, शाह बानो,
लता, अमीना, भंवरी बाई,
माया त्यागी, फूलन...,
श्रीमती अ,
मैडम ब,
या बेगम स...
नाम कुछ भी हो,
औरतें सिर्फ़ औरतें हैं
मर्दों की दुनिया में.
औरतें... चुडै़लें...!
चुडै़लें...औरतें...!
सुनो, सुनो,
अवधूतो! सुनो,
साधुओ! सुनो,
इन नारों को सुनो,
इन भाषणों को सुनो,
संसद और विधान मंडलों को
घेरकर उठती हुई
इन आवाजों को सुनो,
रुदालियों की पोशाक में
मर्द स्यापा कर रहे हैं,
छाती पीट रहे हैं,
धरती कूट रहे हैं,
आसमान फाड़ रहे हैं.
मानते हैं -
औरतजात एक हैं
सारी दुनिया में;
पर कुर्सी की राजनीति को
ऐसा एका बर्दाश्त नहीं,
कुर्सी की खातिर उन्हें
तोड़ना ही होगा
जात - बिरादरी में,
बिखेरना ही होगा
धर्म और मजहब में !
और वे चीख़़ रहे हैं:
औरतें एक नहीं हैं!
औरतें एक नहीं हो सकतीं!
कैसे हो सकती हैं औरतें एक,
हमसे पूछे बिना?
सुनो, सुनो,
अवधूतो ! सुनो,
साधुओ ! सुनो,
इतिहास के खँडहर में
नाच रही हैं चुडै़लें
हँसती हुईं, रोती हुईं , गाती हुईं :
दुनिया भर की औरतों , एक हो !
तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है
खोने को -
सिवा मर्दों की गुलामी के !!