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"हम और सड़कें / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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सूर्यास्त मे समा गयीं  
 
सूर्यास्त मे समा गयीं  
 
 
         सूर्योदय की सड़कें,  
 
         सूर्योदय की सड़कें,  
 
 
जिन पर चलें हम  
 
जिन पर चलें हम  
 
 
तमाम दिन सिर और सीना ताने,  
 
तमाम दिन सिर और सीना ताने,  
 
 
महाकाश को भी वशवर्ती बनाने,  
 
महाकाश को भी वशवर्ती बनाने,  
 
 
         भूमि का दायित्व  
 
         भूमि का दायित्व  
 
 
         उत्क्रांति से निभाने,  
 
         उत्क्रांति से निभाने,  
 
 
और हम  
 
और हम  
 
 
     अब रात मे समा गये,  
 
     अब रात मे समा गये,  
 
 
स्वप्न की देख-रेख में
 
स्वप्न की देख-रेख में
 
 
सुबह की खोयी सड़कों का  
 
सुबह की खोयी सड़कों का  
 
 
जी-जान से पता लगाने
 
जी-जान से पता लगाने
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12:26, 19 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

सूर्यास्त मे समा गयीं
        सूर्योदय की सड़कें,
जिन पर चलें हम
तमाम दिन सिर और सीना ताने,
महाकाश को भी वशवर्ती बनाने,
        भूमि का दायित्व
        उत्क्रांति से निभाने,
और हम
    अब रात मे समा गये,
स्वप्न की देख-रेख में
सुबह की खोयी सड़कों का
जी-जान से पता लगाने