"प्रेम हमारा / विजयशंकर चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी }}<poem> मैंने देखा तुम्हें गुल...) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी | |रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी | ||
− | }}<poem> | + | |अनुवादक= |
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKAnthologyVarsha}} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
मैंने देखा तुम्हें गुलफरोश के यहाँ | मैंने देखा तुम्हें गुलफरोश के यहाँ | ||
गुलाब चुनते हुए | गुलाब चुनते हुए | ||
पंक्ति 47: | पंक्ति 52: | ||
वैसे तो मुझको तुम सुंदर लगती पूरे मन से | वैसे तो मुझको तुम सुंदर लगती पूरे मन से | ||
मुस्करा लेती हो मशीन पर इतने भोलेपन से। | मुस्करा लेती हो मशीन पर इतने भोलेपन से। | ||
+ | </poem> |
22:21, 9 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
मैंने देखा तुम्हें गुलफरोश के यहाँ
गुलाब चुनते हुए
देखता ही रहा।
तुम वे फूल चढ़ा सकती थीं मंदिर में
या खोंस सकती थीं जूड़े में
मगर रख आईं समंदर किनारे रेत पर मेरा नाम खोदकर।
भेजता हूँ प्रेम संदेश
उपग्रहों से होते हुए पहुँचते हैं तुम तक
मेरी मशीन पर उभर आता है तुम्हारा चेहरा
बनाती हो तुम भी कम्प्यूटर पर मेरी तस्वीर
भरती हो उसमें मनचाहे रंग
फिर सुरक्षित कर लेती हो मुझे स्क्रीन पर
हमेशा के लिए।
गली-गली मारे फिरने की फुरसत कहाँ हमें?
यह भी नहीं कि किसी बाग-बागीचे जाएँ
विक्टोरिया पर मरीन ड्राइव का चक्कर लगाएँ
हाथ में हाथ, आँखों में आँखें डालें
चौपाटी पर पैरों से पानी उछालें
मनुष्य होने के उत्सव मनाएँ।
रोबोट बना जड़ दिए जाते हैं हम कुर्सियों पर
लगातार झरती है हमारे दिल पर
रेडियो विकिरण की धूल
जैसे साइबर स्पेस में मंडराता हो कोई जलता बगूल।
अब कहाँ रहा आग का वह दरिया?
हमें तो जाना होगा अंतरिक्ष के पार
क्या पता किसी ग्रह से आ जाए
तुम्हारे लिए प्रकाशपुंजीय तार
और मैं उड़ जाऊँ हमेशा के लिए तुम्हारी स्क्रीन से
कल सारी रात बनाता रहा
तुम्हारे चेहरे का कोलाज
मगर हर रंग लगा मुझसे थोड़ा नाराज
वैसे तो मुझको तुम सुंदर लगती पूरे मन से
मुस्करा लेती हो मशीन पर इतने भोलेपन से।