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"हाथों का तराना / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=मेरा सफ़र / अली सरदार जाफ़री
 
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इन हाथों की ताज़ीम१ करो
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इन हाथों की ताज़ीम<ref>सम्मान</ref> करो
इन हाथों की तकरीम२ करो
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इन हाथों की तकरीम<ref>आदर-सत्कार</ref> करो
 
दुनिया को चलाने वाले हैं
 
दुनिया को चलाने वाले हैं
इन हाथों को तस्लीम३ करो
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इन हाथों को तस्लीम<ref>स्वीकार</ref> करो
  
तारीख़ के और मशीनों के पहियों की रवानी इनसे है
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तारीख़ के और मशीनों के, पहियों की रवानी इनसे है
तहज़ीब की और तमद्दुन की भरपूर जवानी इनसे है
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तहज़ीब की और तमद्दुन की, भरपूर जवानी इनसे है
 
दुनिया का फ़साना इनसे है, इन्साँ की कहानी इनसे है
 
दुनिया का फ़साना इनसे है, इन्साँ की कहानी इनसे है
इन हाथों की ताज़ीम करो
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इन हाथों की ताज़ीम<ref>आदर</ref> करो
  
 
सदियों से गुज़र कर आये हैं, ये नेक और बद को जानते हैं
 
सदियों से गुज़र कर आये हैं, ये नेक और बद को जानते हैं
 
ये दोस्त हैं सारे आलम के, पर दुश्मन को पहचानते हैं
 
ये दोस्त हैं सारे आलम के, पर दुश्मन को पहचानते हैं
खुद शक्ति का अवतार हैं ये, कब गै़र की शक्ति मानते हैं
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खुद शक्ति का अवतार हैं ये, कब गैर की शक्ति मानते हैं
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
  
 
है ज़ख़्म हमारे हाथों के, ये फूल जो हैं गुलदानों में
 
है ज़ख़्म हमारे हाथों के, ये फूल जो हैं गुलदानों में
 
सूखे हुए प्यासे चुल्लू थे, जो जाम हैं अब मयख़ानों में
 
सूखे हुए प्यासे चुल्लू थे, जो जाम हैं अब मयख़ानों में
टूटी हुई सौ अँगडा़इयों की मेहराबें हैं ऐवानों४ में
+
टूटी हुई सौ अँगडा़इयों की, मेहराबें<ref>दीवार में चीजें रखने के लिए बनी जगह</ref> हैं ऐवानों<ref>महलों में</ref> में
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
  
 
राहों की सुनहरी रौशनियाँ, बिजली के जो फैले दामन हैं
 
राहों की सुनहरी रौशनियाँ, बिजली के जो फैले दामन हैं
फ़ानूस हसीं ऐवानों के, जो रंग और नूर के ख़िरमन हैं
+
फ़ानूस हसीं ऐवानों के, जो रंग और नूर के ख़िरमन<ref>पैदावर</ref> हैं
 
ये हाथ हमारे जलते हैं, यह हाथ हमारे रौशन हैं
 
ये हाथ हमारे जलते हैं, यह हाथ हमारे रौशन हैं
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
  
खा़मोश हैं ये, खा़मोशी से, सौ बर्बत-ओ-चंग५ बनाते हैं
+
खा़मोश हैं ये, खा़मोशी से, सौ बर्बत-ओ-चंग<ref>एक तरह का बाजा</ref> बनाते हैं
 
तारों में राग सुलाते हैं, तबलों में बोल छुपाते हैं
 
तारों में राग सुलाते हैं, तबलों में बोल छुपाते हैं
 
जब साज़ में जुम्बिश होती है, तब हाथ हमारे गाते हैं
 
जब साज़ में जुम्बिश होती है, तब हाथ हमारे गाते हैं
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
  
एजाज़ है ये इन हाथों का, रेशम को छुएँ तो आँचल है
+
एजाज़<ref>चमत्कार</ref> है ये इन हाथों का, रेशम को छुएँ तो आँचल है
पत्थर को छुएँ तो बुत कर दें, कालिक को छुएँ तो काजल है
+
पत्थर को छुएँ तो बुत कर दें, कालिख को छुएँ तो काजल है
 
मिट्टी को छुएँ तो सोना है, चाँदी को छुएँ तो पायल है
 
मिट्टी को छुएँ तो सोना है, चाँदी को छुएँ तो पायल है
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
  
 
बहती हुई बिजली की लहरें, सिमटे हुए गंगा के धारे
 
बहती हुई बिजली की लहरें, सिमटे हुए गंगा के धारे
धरती के मुक़द्दर के मालिक, मेहनत के उफ़ुक के सय्यारे६
+
धरती के मुक़द्दर के मालिक, मेहनत के उफ़क<ref>क्षितिज</ref> के सय्यारे<ref>क्षितिज पर घूमने वाले तारे</ref>
 
यह चारागराने-दर्दे-जहाँ, सदियों से मगर ख़ुद बेचारे
 
यह चारागराने-दर्दे-जहाँ, सदियों से मगर ख़ुद बेचारे
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
  
तख़्लीक़७ यह सोज़े-मेहनत की, और फ़ितरत के शहकार भी हैं
+
तख़्लीक़<ref>सृष्टि</ref> यह सोज़े-मेहनत की, और फ़ितरत के शहकार भी हैं
 
मैदाने-अमल में लेकिन खु़द, ये खा़लिक़ भी मे’मार भी हैं
 
मैदाने-अमल में लेकिन खु़द, ये खा़लिक़ भी मे’मार भी हैं
 
फूलों से भरे ये शाख़ भी हैं और चलती हुई तलवार भी हैं
 
फूलों से भरे ये शाख़ भी हैं और चलती हुई तलवार भी हैं
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
  
ये हाथ न हों तो मुह्मल८ सब, तहरीरें और तक़रीरें हैं
+
ये हाथ न हों तो मुहमल<ref>अर्थहीन</ref> सब, तहरीरें और तक़रीरें हैं
 
ये हाथ न हों तो बेमानी, इन्सानों की तक़दीरें हैं
 
ये हाथ न हों तो बेमानी, इन्सानों की तक़दीरें हैं
सब हिकमतो-दानिश, इल्मो-हुनर, इन हाथों की तफ़सीरें हैं
+
सब हिकमतो-दानिश, इल्मो-हुनर, इन हाथों की तफ़सीरें<ref>टिप्पणी</ref> हैं
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
  
पंक्ति 62: पंक्ति 63:
 
यह सरहद-सरहद जुड़ते हैं और मुल्कों-मुल्कों जाते हैं
 
यह सरहद-सरहद जुड़ते हैं और मुल्कों-मुल्कों जाते हैं
 
बाँहों में बाँहें डालते हैं और दिल को दिल से मिलाते हैं
 
बाँहों में बाँहें डालते हैं और दिल को दिल से मिलाते हैं
फिर ज़ुल्मो-सितम के पैरों की ज़ंजीरे-गराँ९ बन जाते हैं
+
फिर ज़ुल्मो-सितम के पैरों की ज़ंजीरे-गराँ<ref>भारी ज़ंजीरें</ref> बन जाते हैं
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
 
इन हाथों की ताज़ीम करो
 
१.सम्मान २.आदर-सत्कार ३.स्वीकार ४.महलों में ५.एक तरह का बाजा  ६.क्षितिज पर घूमने वाले तारे ७.सृष्टि ८.अर्थहीन ९.भारी ज़ंजीरें
 
 
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18:30, 28 मार्च 2010 के समय का अवतरण

इन हाथों की ताज़ीम<ref>सम्मान</ref> करो
इन हाथों की तकरीम<ref>आदर-सत्कार</ref> करो
दुनिया को चलाने वाले हैं
इन हाथों को तस्लीम<ref>स्वीकार</ref> करो

तारीख़ के और मशीनों के, पहियों की रवानी इनसे है
तहज़ीब की और तमद्दुन की, भरपूर जवानी इनसे है
दुनिया का फ़साना इनसे है, इन्साँ की कहानी इनसे है
इन हाथों की ताज़ीम<ref>आदर</ref> करो

सदियों से गुज़र कर आये हैं, ये नेक और बद को जानते हैं
ये दोस्त हैं सारे आलम के, पर दुश्मन को पहचानते हैं
खुद शक्ति का अवतार हैं ये, कब गैर की शक्ति मानते हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो

है ज़ख़्म हमारे हाथों के, ये फूल जो हैं गुलदानों में
सूखे हुए प्यासे चुल्लू थे, जो जाम हैं अब मयख़ानों में
टूटी हुई सौ अँगडा़इयों की, मेहराबें<ref>दीवार में चीजें रखने के लिए बनी जगह</ref> हैं ऐवानों<ref>महलों में</ref> में
इन हाथों की ताज़ीम करो

राहों की सुनहरी रौशनियाँ, बिजली के जो फैले दामन हैं
फ़ानूस हसीं ऐवानों के, जो रंग और नूर के ख़िरमन<ref>पैदावर</ref> हैं
ये हाथ हमारे जलते हैं, यह हाथ हमारे रौशन हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो

खा़मोश हैं ये, खा़मोशी से, सौ बर्बत-ओ-चंग<ref>एक तरह का बाजा</ref> बनाते हैं
तारों में राग सुलाते हैं, तबलों में बोल छुपाते हैं
जब साज़ में जुम्बिश होती है, तब हाथ हमारे गाते हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो

एजाज़<ref>चमत्कार</ref> है ये इन हाथों का, रेशम को छुएँ तो आँचल है
पत्थर को छुएँ तो बुत कर दें, कालिख को छुएँ तो काजल है
मिट्टी को छुएँ तो सोना है, चाँदी को छुएँ तो पायल है
इन हाथों की ताज़ीम करो

बहती हुई बिजली की लहरें, सिमटे हुए गंगा के धारे
धरती के मुक़द्दर के मालिक, मेहनत के उफ़क<ref>क्षितिज</ref> के सय्यारे<ref>क्षितिज पर घूमने वाले तारे</ref>
यह चारागराने-दर्दे-जहाँ, सदियों से मगर ख़ुद बेचारे
इन हाथों की ताज़ीम करो

तख़्लीक़<ref>सृष्टि</ref> यह सोज़े-मेहनत की, और फ़ितरत के शहकार भी हैं
मैदाने-अमल में लेकिन खु़द, ये खा़लिक़ भी मे’मार भी हैं
फूलों से भरे ये शाख़ भी हैं और चलती हुई तलवार भी हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो

ये हाथ न हों तो मुहमल<ref>अर्थहीन</ref> सब, तहरीरें और तक़रीरें हैं
ये हाथ न हों तो बेमानी, इन्सानों की तक़दीरें हैं
सब हिकमतो-दानिश, इल्मो-हुनर, इन हाथों की तफ़सीरें<ref>टिप्पणी</ref> हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो

ये कितने सबुक और नाज़ुक हैं, ये कितने सुडौल और अच्छे हैं
चालाकी में उस्ताद हैं ये, और भोलेपन में बच्चे हैं
इस झुठ की गन्दी दुनिया में, बस हाथ हमारे सच्चे हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो

यह सरहद-सरहद जुड़ते हैं और मुल्कों-मुल्कों जाते हैं
बाँहों में बाँहें डालते हैं और दिल को दिल से मिलाते हैं
फिर ज़ुल्मो-सितम के पैरों की ज़ंजीरे-गराँ<ref>भारी ज़ंजीरें</ref> बन जाते हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो



शब्दार्थ
<references/>