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"खुलता नहीं है हाल किसी पर कहे बग़ैर / ज़फ़र" के अवतरणों में अंतर

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मैं क्यूँकर कहूँ तुम आओ कि दिल की कशिश से वो
पर दिल की जान लेते हैं दिलबर कहे बग़ैर <br><br>
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12:00, 15 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

खुलता नहीं है हाल किसी पर कहे बग़ैर
पर दिल की जान लेते हैं दिलबर कहे बग़ैर

मैं क्यूँकर कहूँ तुम आओ कि दिल की कशिश से वो
आयेँगे दौड़े आप मेरे घर कहे बग़ैर

क्या ताब क्या मजाल हमारी कि बोसा लें
लब को तुम्हारे लब से मिलाकर कहे बग़ैर

बेदर्द तू सुने न सुने लेकिन ये दर्द-ए-दिल
रहता नहीं है आशिक़-ए-मुज़तर कहे बग़ैर

तकदीर के सिवा नहीं मिलता कहीं से भी
दिलवाता ऐ "ज़फ़र" है मुक़द्दर कहे बग़ैर