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"तुम्हारी आँखें / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर

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तुम्हारी आँखें
 
तुम्हारी आँखें

00:17, 6 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

तुम्हारी आँखें
हसीन, शफ़्फ़ाफ़, मुस्कराती, जवान आँखें
लरज़ती पलकों की चिलमनों में
शहाबी चेहरे पे अबरुओं की कमाँ के नीचे
तुम्हारी आँखें
वो जिनकी नज़रों के ठण्डे साये में मेरी उल्फ़त
मिरी जवानी की रात परवान चढ़ रही थी
तुम्हारी आँखें
अँधेरी रातों में जो सितारों की रौशनी से
फ़ज़ाए-ज़िंदाँ में झाँकती हैं

मैं लिख रहा हूँ
तुम्हारी आँखें सफेद कागज़ पे अपनी पलकों से चल रही हैं
मै पढ़ रहा हूँ
तुम्हारी आँखें हर इस सत्‌र की भौओं के नीचे लरज़ रही हैं
मै सो रहा हूँ
तुम्हारी आँखें तुम्हारी पलकें कहानियाँ सी सुना रही हैं
मैं दोस्तों और साथियों में घिरा हुआ हूँ
मसर्रतों<ref>आनंद</ref> के गुलाब हर सिम्त<ref>तरफ़
</ref>खिल रहे हैं
तुम्हारी आँखों के फूल गोया महक रहे हैं

मुझे गिरिफ़्तार करके जब जेल ला रहे थे पुलिस वाले
तुम अपने बिस्तर से अपने दिल के
अधूरे ख़्वाबों को लेके बेदार हो गई थीं
तुम्हारी पलकों से नींद अब भी टपक रही थी
मगर निगाहों में नफ़रतों के अज़ीम शोले भड़क उठे थे
तुम्हारी आँखें हिक़ारतों के जहन्नमों को जगा रही थीं
निज़ामे-ज़ुल्मो-सितम पे बिजली गिरा रही थी

मिरी महब्बत ने अपनी जन्नत का हुस्न देखा
तुम्हारी आँखें पे मेरी नज़रों के प्यार बरसे
मिरी उम्मीदों, मिरी तमन्नाओं ने सदा दी
यह नफ़रतों की अज़ीम मश्‌अ़ल जलाये रखना
कि यह महब्बत के दिल का शो’ला है जिसकी रंगीन रौशनी में
हमारे ख़्वाबॊं के रास्ते जगमगा रहे हैं
तुम्हारी आँखें
जो मेरे सीने में तैरती हैं
कँवल की कलियाँ जो मेरे दिल में खिली हुई हैं

उन्हीं से दो और आँखें बेदार<ref>जाग़्रत
</ref> हो गई हैं
वो नन्हे-नन्हे चमकते हीरों की नन्ही कनियाँ
जो मेरी आँखों का नूर लेकर तुम्हारे आँचल से झाँकती हैं
फिर और आँखें, फिर और आँखें, फिर और आँखें
यह सिलसिला ता-अबद<ref>हमेशा</ref> रहेगा
ज़माने की गोद में सितारों के हुस्न की नदियाँ बहेंगी,
वो सब तुम्हारी
वो सब हमारी ही आँखें होंगी
हमारी आँखें कि जिनसे शो’ले बरस रहे हैं
मगर वह कल का हसीन दिन देखो कितना नज़दीक
 आ गया है
हमारी आँखों से जब बहारें छलक पड़ेंगी

शब्दार्थ
<references/>