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"घर / पंकज सुबीर" के अवतरणों में अंतर

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इसलिये शायद
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फिर भी मैं सुन लेता हूं
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और जान लेता हूं
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कि मेरा घर
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बूढ़ा होता जा रहा है
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23:52, 19 मई 2009 के समय का अवतरण

मेरा घर बुढ़ाने लगा है
खांसती हैं दीवारे आजकल
रात भर
हालंकि डरती हैं
कि कहीं मेरी नींद न टूट जाए
इसलिये शायद
लिहाफ में मुंह दबा कर खांसती हैं
फिर भी मैं सुन लेता हूं
और जान लेता हूं
कि मेरा घर
बूढ़ा होता जा रहा है