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"इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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अब ज़फ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह<br>
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दिल से मिटना तेरी अन्गुश्ते-हिनाई<ref>मेंहदी-लगी अंगुली</ref> का ख्याल
इस कदर दुश्मन-ए-अरबाब-ए-वफ़ा हो जाना<br><br>
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हो गया गोश्त से नाख़ुन का जुदा हो जाना
  
ज़ोफ़ से गिरिया मुबादिल बाह दम सर्द हवा<br>
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है मुझे अब्र-ए-बहारी<ref>बरसाती बादल</ref> का बरस कर खुलना
बावर आया हमें पानी का हवा हो जाना<br><br>
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रोते-रोते ग़म-ए-फ़ुरकत में फ़ना हो जाना
  
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गर नहीं नकहत-ए-गुल<ref>पुष्प-सौरभ</ref> को तेरे कूचे की हवस
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रोते-रोते ग़म-ए-फ़ुरकत में फ़ना हो जाना<br><br>
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चश्म को चाहिये हर रंग में वा हो जाना<br><br>
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18:17, 15 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

इशरत-ए-क़तरा<ref>बूंद का ऐश्वर्य</ref> है दरिया में फ़ना<ref>विलीन</ref> हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना

तुझसे क़िस्मत में मेरी सूरत-ए-कुफ़्ल-ए-अबजद<ref>ताले के सदृश</ref>
था लिखा बात के बनते ही जुदा हो जाना

दिल हुआ कशमकशे-चारा-ए-ज़हमत<ref>दुःख के उपचार की चेष्टा</ref> में तमाम
मिट गया घिसने में इस उक़्दे<ref>गाँठ</ref> का वा हो जाना<ref>खुलना</ref>

अब ज़फ़ा से भी हैं महरूम<ref>वंचित</ref> हम, अल्लाह-अल्लाह!
इस क़दर दुश्मन-ए-अरबाब-ए-वफ़ा<ref>चाहनेवालों का शत्रु</ref> हो जाना

ज़ोफ़<ref>निर्बलता</ref> से गिरियां<ref>रुदन</ref> मुबदृल<ref>परिणत</ref> व-दमे-सर्द<ref>ठंडी आह</ref> हुआ
बावर<ref>यकीन</ref> आया हमें पानी का हवा हो जाना

दिल से मिटना तेरी अन्गुश्ते-हिनाई<ref>मेंहदी-लगी अंगुली</ref> का ख्याल
हो गया गोश्त से नाख़ुन का जुदा हो जाना

है मुझे अब्र-ए-बहारी<ref>बरसाती बादल</ref> का बरस कर खुलना
रोते-रोते ग़म-ए-फ़ुरकत में फ़ना हो जाना

गर नहीं नकहत-ए-गुल<ref>पुष्प-सौरभ</ref> को तेरे कूचे की हवस
क्यों है गर्द-ए-रह-ए-जौलाने-सबा<ref>चमन की वायु के मार्ग की धूल</ref> हो जाना

ताकि मुझ पर खुले ऐजाज़े-हवाए-सैक़ल<ref>क़लई की वायु का रहस्य</ref>
देख बरसात में सब्ज़ आईने का हो जाना

बख्शे है जलवा-ए-गुल ज़ौक<ref>आनंद</ref>-ए-तमाशा, गालिब
चश्म<ref>आँख</ref> को चाहिए हर रंग में वा<ref>खुलना</ref> हो जाना

शब्दार्थ
<references/>