भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तेरी आवाज़ / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
<poem>
 
<poem>
 
आइना है तेरी आवाज़
 
आइना है तेरी आवाज़
 
 
जहाँ दिखती है मुझे
 
जहाँ दिखती है मुझे
 
 
अपनी मुकम्मिल शक्ल
 
अपनी मुकम्मिल शक्ल
 
 
हो उठता हूँ जीवित
 
हो उठता हूँ जीवित
 
 
सुनकर तेरी आवाज़
 
सुनकर तेरी आवाज़
 
 
अंधेरों में भी
 
अंधेरों में भी
 
 
सूझ पड़ता है रास्ता
 
सूझ पड़ता है रास्ता
 
 
हो जाता हूँ शामिल
 
हो जाता हूँ शामिल
 
 
दुनिया में
 
दुनिया में
 
 
नई ताजगी
 
नई ताजगी
 
 
और नए विश्वास के साथ ,
 
और नए विश्वास के साथ ,
 
 
जब सुनता हूँ -
 
जब सुनता हूँ -
 
 
तेरी आवाज़
 
तेरी आवाज़
 
</poem>
 
</poem>

23:27, 6 जून 2009 के समय का अवतरण

आइना है तेरी आवाज़
जहाँ दिखती है मुझे
अपनी मुकम्मिल शक्ल
हो उठता हूँ जीवित
सुनकर तेरी आवाज़
अंधेरों में भी
सूझ पड़ता है रास्ता
हो जाता हूँ शामिल
दुनिया में
नई ताजगी
और नए विश्वास के साथ ,
जब सुनता हूँ -
तेरी आवाज़