भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दो चिराग़ / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
 
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatNazm}}
 
<poem>
 
<poem>
 
दो चिराग़
 
=======
 
 
 
तीरगी के सियाह ग़ारों से
 
तीरगी के सियाह ग़ारों से
 
शहपरों की सदाएँ आती हैं
 
शहपरों की सदाएँ आती हैं
पंक्ति 15: पंक्ति 12:
  
 
एक मैली दुकान तीरः-ओ-तार
 
एक मैली दुकान तीरः-ओ-तार
इक चिराग़ और एक दोशीज़ा
+
इक चिराग़ और एक दोशीज़ा<ref>किशोरी</ref>
वोह बुझी-सी है वह उदास सा है
+
वोह बुझी-सी है वह उदास-सा है
 
दोनों जाड़ों की लम्बी रातों में
 
दोनों जाड़ों की लम्बी रातों में
 
तीरगी और हवा से लड़ते हैं
 
तीरगी और हवा से लड़ते हैं
पंक्ति 23: पंक्ति 20:
 
और हवाओं के हाथ में गुस्ताख़
 
और हवाओं के हाथ में गुस्ताख़
 
तोड़े लेते हैं नन्हे शो’ले को
 
तोड़े लेते हैं नन्हे शो’ले को
भींचे ली हैं मैले आँचल को
+
भींच लेते हैं मैले आँचल को
 
लड़की रह-रह के जिस्म ढाँपती है
 
लड़की रह-रह के जिस्म ढाँपती है
 
शो’ला रह-रह के थरथराता है
 
शो’ला रह-रह के थरथराता है
नंगी बुढ़ी ज़मीन काँपती है
+
नंगी बूढ़ी ज़मीन काँपती है
  
 
तीरगी अब सियह समन्दर है
 
तीरगी अब सियह समन्दर है
पंक्ति 32: पंक्ति 29:
 
या तो दोनों  चिराग़ गुल होंगे
 
या तो दोनों  चिराग़ गुल होंगे
 
या करेंगे वो शो’ला-अफ़शानी<ref>अंगारे बरसाना </ref>
 
या करेंगे वो शो’ला-अफ़शानी<ref>अंगारे बरसाना </ref>
फूँक डालेंगे तीरगी की मता’<ref>अन्धकार की सत्ता[सम्पत्ति]</ref>
+
फूँक डालेंगे तीरगी की मता<ref>अन्धकार की सत्ता[सम्पत्ति]</ref>
  
पर मुझे एतिमाद है इन पर
+
पर मुझे एतिमाद<ref>भरोसा</ref> है इन पर
 
गो ग़रीब और बेज़बान-से हैं
 
गो ग़रीब और बेज़बान-से हैं
 
दोनों हैं आग दोनों हैं शो’ला
 
दोनों हैं आग दोनों हैं शो’ला
 
दोनों बिजली के ख़ानदान से हैं
 
दोनों बिजली के ख़ानदान से हैं
--------------------------------------------
+
</poem>
 
{{KKMeaning}}
 
{{KKMeaning}}
 
</poem>
 

09:48, 6 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

तीरगी के सियाह ग़ारों से
शहपरों की सदाएँ आती हैं
ले के झोंकों की तेज़ तलवारें
ठण्डी-ठण्डी हवाएँ आती हैं
बर्फ़ ने जिन पे धार रक्खी है

एक मैली दुकान तीरः-ओ-तार
इक चिराग़ और एक दोशीज़ा<ref>किशोरी</ref>
वोह बुझी-सी है वह उदास-सा है
दोनों जाड़ों की लम्बी रातों में
तीरगी और हवा से लड़ते हैं
तीरगी उठ रही है मैदाँ में
फ़ौज-दर-फ़ौज बादलों की तरह
और हवाओं के हाथ में गुस्ताख़
तोड़े लेते हैं नन्हे शो’ले को
भींच लेते हैं मैले आँचल को
लड़की रह-रह के जिस्म ढाँपती है
शो’ला रह-रह के थरथराता है
नंगी बूढ़ी ज़मीन काँपती है

तीरगी अब सियह समन्दर है
और हवा हो गयी है दीवानी
या तो दोनों चिराग़ गुल होंगे
या करेंगे वो शो’ला-अफ़शानी<ref>अंगारे बरसाना </ref>
फूँक डालेंगे तीरगी की मता<ref>अन्धकार की सत्ता[सम्पत्ति]</ref>

पर मुझे एतिमाद<ref>भरोसा</ref> है इन पर
गो ग़रीब और बेज़बान-से हैं
दोनों हैं आग दोनों हैं शो’ला
दोनों बिजली के ख़ानदान से हैं

शब्दार्थ
<references/>