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"लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं (ग़ज़ल) / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर
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लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं | लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं | ||
− | हम | + | हम क़फ़े-दस्ते-ख़िज़ाँ पर भी हिना माँगते हैं |
हमनशीं सादादिली-हाए-तमन्ना<ref>इच्छा की सरलताएँ</ref> मत पूछ | हमनशीं सादादिली-हाए-तमन्ना<ref>इच्छा की सरलताएँ</ref> मत पूछ | ||
बेवफ़ाओं से वफ़ाओं का सिला माँगते हैं | बेवफ़ाओं से वफ़ाओं का सिला माँगते हैं | ||
− | काश कर लेते कभी | + | काश कर लेते कभी काबा-ए-दिल का भी तवाफ़ |
− | वो जो पत्थर के मकानों से | + | वो जो पत्थर के मकानों से ख़ुदा माँगते हैं |
− | जिसमें हो | + | जिसमें हो सतवते-शाहीन की परवाज़ का रंग |
लबे-शाइर से वो बुलबुल की नवा माँगते हैं | लबे-शाइर से वो बुलबुल की नवा माँगते हैं | ||
− | ताकि दुनिया पे | + | ताकि दुनिया पे खुले उनका फ़रेबे-इंसाफ़ |
बेख़ता होके ख़ताओं की सज़ा माँगते हैं | बेख़ता होके ख़ताओं की सज़ा माँगते हैं | ||
− | तीरगी जितनी | + | तीरगी जितनी बढ़े हुस्न हो अफ़ज़ूँ तेरा |
कहकशाँ माँग में, माथे पे ज़िया माँगते हैं | कहकशाँ माँग में, माथे पे ज़िया माँगते हैं | ||
08:52, 6 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं
हम क़फ़े-दस्ते-ख़िज़ाँ पर भी हिना माँगते हैं
हमनशीं सादादिली-हाए-तमन्ना<ref>इच्छा की सरलताएँ</ref> मत पूछ
बेवफ़ाओं से वफ़ाओं का सिला माँगते हैं
काश कर लेते कभी काबा-ए-दिल का भी तवाफ़
वो जो पत्थर के मकानों से ख़ुदा माँगते हैं
जिसमें हो सतवते-शाहीन की परवाज़ का रंग
लबे-शाइर से वो बुलबुल की नवा माँगते हैं
ताकि दुनिया पे खुले उनका फ़रेबे-इंसाफ़
बेख़ता होके ख़ताओं की सज़ा माँगते हैं
तीरगी जितनी बढ़े हुस्न हो अफ़ज़ूँ तेरा
कहकशाँ माँग में, माथे पे ज़िया माँगते हैं
यह है वारफ़्तगिए-शौक़<ref>प्रेम की बेसुधी</ref> का आलम ‘सरदार’
बारिशे-संग<ref>पत्थरों की बारिश</ref> है और बादे-सबा माँगते हैं
शब्दार्थ
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