भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तेरे ख़याल से लौ दे उठी है तनहाई / नासिर काज़मी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=नासिर काज़मी
 
|रचनाकार=नासिर काज़मी
 
}}
 
}}
[[Category:गज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
  
 
तेरे ख़याल से लौ दे उठी है तनहाई <br>
 
तेरे ख़याल से लौ दे उठी है तनहाई <br>

04:06, 28 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

तेरे ख़याल से लौ दे उठी है तनहाई
शब-ए-फ़िराक़ है या तेरी जल्वाआराई

तू किस ख़याल में है ऐ मंज़िलों के शादाई
उन्हें भी देख जिन्हें रास्ते में नींद आई

पुकार ऐ जरस-ए-कारवाँ-ए-सुबह-ए-तरब
भटक रहे हैं अँधेरों में तेरे सौदाई

राह-ए-हयात में कुछ मर्हले तो देख लिये
ये और बात तेरी आरज़ू न रास आई

ये सानिहा भी मुहब्बत में बारहा गुज़रा
कि उस ने हाल भी पूछा तो आँख भर आई

फिर उस की याद में दिल बेक़रार है "नासिर"
बिछड़ के जिस से हुई शहर-शहर रुसवाई