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राति की जागी प्रभात उठी अँगरात जँभात लजात लगी हिये ।
'''पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मलहोत्रा महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
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