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आरस सोँ रस सोँ पदमाकर / पद्माकर
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05:12, 3 जून 2009
राति की जागी प्रभात उठी अँगरात जँभात लजात लगी हिये ।
'''पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल
मलहोत्रा
महरोत्रा
के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
</Poem>
अनिल जनविजय
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