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नागयज्ञ / कविता वाचक्नवी
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,
11:07, 6 जून 2009
रहे असफल
उन्हें क्या ज्ञात है -
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स्फोट में ही
:::
प्राण अपने
:::
जागते हैं।
दहकते चोले बसंती
और भी फुंकारती हैं।
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अब कपालों का करेंगे
:::
खूब मोचन
:::
वेदियाँ हुँकारती हैं।
</poem>
अनिल जनविजय
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