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"जीवन / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर

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यह तपते अंगारों पर
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नंगे पाँवों
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हँस-हँस चलने
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बार-बार
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प्रतिपल जलने का
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नट-नर्तन है।
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16:33, 6 जून 2009 के समय का अवतरण

जीवन तो
यों
स्वप्न नहीं है
आँख मुँदी औ’ खुली
चुक गया।

यह तपते अंगारों पर
नंगे पाँवों
हँस-हँस चलने
बार-बार
प्रतिपल जलने का
नट-नर्तन है।