"आँखे / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर
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इसीलिए उनमें दिखने वाले दृश्य और भी सुंदर हो उठते हैं | इसीलिए उनमें दिखने वाले दृश्य और भी सुंदर हो उठते हैं |
19:33, 11 मई 2010 के समय का अवतरण
आँखे संसार के सबसे सुंदर दृश्य हैं
इसीलिए उनमें दिखने वाले दृश्य और भी सुंदर हो उठते हैं
उनमें एक पेड़ सिहरता है एक बादल उड़ता है नीला रंग प्रकट होता है
सहसा अतीत की कोई चमक लौटती है
या कुछ ऐसी चीज़ें झलक उठती हैं जो दुनिया में अभी आने को हैं
वे दो पृथ्वियों की तरह हैं
प्रेम से भरी हुई जब वे दूसरी आंखों को देखती हैं
तो देखते ही देखते कट जाते हैं लंबे और बुरे दिन
यह एक पुरानी कहानी है
कौन जानता है इस बीच उन्हें क्या-क्या देखना पड़ा
और दुनिया में सुंदर चीज़ें किस तरह नष्ट होती चली गईं
अब उनमें दिखता है एक ढहा हुआ घर कुछ हिलती-डुलती छायाएं
एक पुरानी लालटेन जिसका कांच काला पड़ गया है
वे प्रकाश सोखती रहती हैं कुछ नहीं कहतीं
सतत आश्चर्य में खुली रहती हैं
चेहरे पर शोभा की वस्तुएं किसी विज्ञापन में सजी हुई ।
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