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"सरकार हो कैसी भी / अनातोली परपरा" के अवतरणों में अंतर

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सरकार हो कैसी भी

कैसा भी राजा

महान कवि का होता है जीना हराम


गाता है जब वह गीत आज़ादी के

चुकाता है मूल्य उसका

अपनी आज़ादी से


हरेक तानाशाह के साम्राज्य में

कवि ही देता है शब्द

प्रताड़ित जनता के कष्टों को


होता है जब कभी राज आज़ादी का

करता है तांडव शैतान

ख़ुदा की छाती पर

करता है वह क़त्ल

आज़ादी को उसी आज़ादी से


नहीं सुनाई देती इसी वज़ह

महान कवियों की आवाज़

आज़ादी के दौर में


(रचनाकाल : 1995)