भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उक्ति / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" | |रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" | ||
+ | |संग्रह=अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" | ||
}} | }} | ||
− | कुछ न हुआ, न | + | {{KKCatKavita}} |
− | मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल | + | <poem> |
− | पास तुम रहो! | + | कुछ न हुआ, न हो |
− | मेरे नभ के बादल यदि न कटे- | + | मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल |
− | चन्द्र रह गया ढका, | + | ::::पास तुम रहो! |
− | तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे | + | मेरे नभ के बादल यदि न कटे- |
− | + | :::चन्द्र रह गया ढका, | |
− | रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम | + | तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे |
− | हाथ यदि गहो। | + | :::लेश गगन-भास का, |
− | बहु रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा | + | रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम |
− | मन्द सबों ने कहा, | + | :::हाथ यदि गहो। |
− | मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा | + | बहु-रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा-- |
− | ज्ञान जहाँ का रहा, | + | :::मन्द सबों ने कहा, |
− | रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम | + | मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा-- |
− | कथा यदि कहो।< | + | :::ज्ञान, जहाँ का रहा, |
+ | रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम | ||
+ | :::कथा यदि कहो। | ||
+ | </poem> |
01:27, 11 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
कुछ न हुआ, न हो
मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल
पास तुम रहो!
मेरे नभ के बादल यदि न कटे-
चन्द्र रह गया ढका,
तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे
लेश गगन-भास का,
रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम
हाथ यदि गहो।
बहु-रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा--
मन्द सबों ने कहा,
मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा--
ज्ञान, जहाँ का रहा,
रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम
कथा यदि कहो।