भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भर देते हो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 
|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 
}}
 
}}
भर देते हो<br>
+
{{KKCatKavita}}
बार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से<br>
+
<poem>
क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो।<br><br>
+
भर देते हो
 +
बार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से
 +
क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो ।
  
मेरे अन्तर में आते हो, देव, निरन्तर,<br>
+
मेरे अन्तर में आते हो, देव, निरन्तर,
कर जाते हो व्यथा-भाल लधु<br>
+
कर जाते हो व्यथा-भार लघु
बार-बार कर-कंज बढ़ाकर;<br><br>
+
बार-बार कर-कंज बढ़ाकर;
  
अंधकार में मेरा रोदन<br>
+
अंधकार में मेरा रोदन
सिक्त धरा के अंचल को<br>
+
सिक्त धरा के अंचल को
करता है क्षण-क्षण-<br><br>
+
करता है क्षण-क्षण-
  
कुसुम-कपोलों पर वे लोल शिशिर-कण<br>
+
कुसुम-कपोलों पर वे लोल शिशिर-कण
तुम किरणों से अश्रु पोंछ लेते हो,<br>
+
तुम किरणों से अश्रु पोंछ लेते हो,
नव प्रभात जीवन में भर देते हो।<br><br>
+
नव प्रभात जीवन में भर देते हो ।
 +
</poem>

01:38, 24 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

भर देते हो
बार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से
क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो ।

मेरे अन्तर में आते हो, देव, निरन्तर,
कर जाते हो व्यथा-भार लघु
बार-बार कर-कंज बढ़ाकर;

अंधकार में मेरा रोदन
सिक्त धरा के अंचल को
करता है क्षण-क्षण-

कुसुम-कपोलों पर वे लोल शिशिर-कण
तुम किरणों से अश्रु पोंछ लेते हो,
नव प्रभात जीवन में भर देते हो ।