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+ | फिर-फिर पानी खोज रही | ||
+ | सूखे कण्ठ-कोकिला, मीठी | ||
+ | बानी खोज रही | ||
+ | नीम द्वार का, छाया खोजे | ||
+ | पीपल गाछ तलाशे | ||
+ | नदी खोजती धार | ||
+ | कूल कब से बैठे हैं प्यासे | ||
+ | पानी-पानी रटे | ||
+ | रात-दिन, ऐसा ताल हुआ | ||
+ | जाने क्या हो गया, कि | ||
+ | सूरज इतना लाल हुआ। | ||
+ | सूने-सूने राह, हाट, वन | ||
+ | सब कुछ सूना-सूना | ||
+ | बढ़ता जाता और दिनो-दिन | ||
+ | तेज धूप का दूना | ||
+ | धरती व्याकुल, | ||
+ | अम्बर व्याकुल | ||
+ | व्याकुल ताल-तलैया | ||
+ | पनघट, कुँआ, बावड़ी व्याकुल | ||
+ | व्याकुल बछड़ा-गैया | ||
+ | अब तो आस तुझी से बादल | ||
+ | क्यों कंगाल हुआ | ||
जाने क्या हो गया, कि | जाने क्या हो गया, कि | ||
+ | सूरज इतना लाल हुआ। | ||
− | + | -डॅा. जगदीश व्योम | |
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11:14, 30 नवम्बर 2023 के समय का अवतरण
जाने क्या हो गया, कि
सूरज इतना लाल हुआ।
प्यासी हवा हाँफती
फिर-फिर पानी खोज रही
सूखे कण्ठ-कोकिला, मीठी
बानी खोज रही
नीम द्वार का, छाया खोजे
पीपल गाछ तलाशे
नदी खोजती धार
कूल कब से बैठे हैं प्यासे
पानी-पानी रटे
रात-दिन, ऐसा ताल हुआ
जाने क्या हो गया, कि
सूरज इतना लाल हुआ।
सूने-सूने राह, हाट, वन
सब कुछ सूना-सूना
बढ़ता जाता और दिनो-दिन
तेज धूप का दूना
धरती व्याकुल,
अम्बर व्याकुल
व्याकुल ताल-तलैया
पनघट, कुँआ, बावड़ी व्याकुल
व्याकुल बछड़ा-गैया
अब तो आस तुझी से बादल
क्यों कंगाल हुआ
जाने क्या हो गया, कि
सूरज इतना लाल हुआ।
-डॅा. जगदीश व्योम