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ऐ सुलगते हुए चराग़ भड़क  | ऐ सुलगते हुए चराग़ भड़क  | ||
15:16, 17 जुलाई 2009 के समय का अवतरण
तम्सील <ref>उपमा</ref> 
कितनी सदियों के इन्तज़ार के बाद 
क़ुर्बत-ए-यक-नफ़स<ref>घनिष्टता</ref> नसीब<ref>भाग्य से मिली हुई</ref> हुई
फिर भी तू चुप उदास कम-आवेज़<ref>मिलने-जुलने से कतराने वाला (of reserved nature)</ref>
ऐ सुलगते हुए चराग़ भड़क
दर्द की रौशनी को चांद बना
कि अभी आंधियों का शोर है तेज़
अप पल मर्ग-ए-जावेदां<ref>हमेशा क़ायम रहने वाली मृत्यु</ref> का सिला<ref>फल, बदला</ref>
अजनबीयत<ref>अनजानापन</ref> के ज़हर में मत घोल
मुझको मत देख मगर आँख तो खोल
शब्दार्थ
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