भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जेनी के लिए / कार्ल मार्क्स" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कार्ल मार्क्स |संग्रह= }} <poem> जेनी ! दिक करने को तु...)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=कार्ल मार्क्स  
 
|रचनाकार=कार्ल मार्क्स  
 +
|अनुवादक=सोमदत्त
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
जेनी ! दिक करने को तुम पूछ सकती हो
 
जेनी ! दिक करने को तुम पूछ सकती हो
पंक्ति 11: पंक्ति 12:
 
जबकि कलपते हैं बस तुम्हारे लिए मेरे गीत
 
जबकि कलपते हैं बस तुम्हारे लिए मेरे गीत
 
जबकि तुम, बस तुम्हीं, उन्हें उड़ान दे पाती हो
 
जबकि तुम, बस तुम्हीं, उन्हें उड़ान दे पाती हो
::जनकि हर अक्षर से फूटता हो तुम्हारा नाम
+
::जबकि हर अक्षर से फूटता हो तुम्हारा नाम
 
::जबकि स्वर-स्वर को देती हो माधुर्य तुम्हीं
 
::जबकि स्वर-स्वर को देती हो माधुर्य तुम्हीं
 
::जबकि साँस-साँस निछावर हो अपनी देवी पर !
 
::जबकि साँस-साँस निछावर हो अपनी देवी पर !
पंक्ति 20: पंक्ति 21:
 
::मानो कोई विस्मयजनक अलौकिक सत्तानुभूति
 
::मानो कोई विस्मयजनक अलौकिक सत्तानुभूति
 
मानो राग कोई स्वर्ण-तारों के सितार पर !
 
मानो राग कोई स्वर्ण-तारों के सितार पर !
 +
 +
'''रचनाकाल : 1836'''
 +
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सोमदत्त'''
 
</poem>
 
</poem>

12:31, 5 मई 2018 के समय का अवतरण

जेनी ! दिक करने को तुम पूछ सकती हो
सबोधित करता हूँ गीत क्यों जेनी को
जबकि तुम्हारी ही ख़ातिर होती मेरी धड़कन तेज़
जबकि कलपते हैं बस तुम्हारे लिए मेरे गीत
जबकि तुम, बस तुम्हीं, उन्हें उड़ान दे पाती हो
जबकि हर अक्षर से फूटता हो तुम्हारा नाम
जबकि स्वर-स्वर को देती हो माधुर्य तुम्हीं
जबकि साँस-साँस निछावर हो अपनी देवी पर !
इसलिए कि अद्‌भुत्त मिठास से पगा है यह प्यारा नाम
और कहती है कितना-कुछ मुझसे उसकी लयकारियाँ
इतनी परिपूर्ण, इतनी सुरीली उसकी ध्वनियाँ
ठीक वैसे, जैसे कहीं दूर, आत्माओं की गूँजती स्वर-वलियाँ
मानो कोई विस्मयजनक अलौकिक सत्तानुभूति
मानो राग कोई स्वर्ण-तारों के सितार पर !

रचनाकाल : 1836
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सोमदत्त