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"जिगर मुरादाबादी / परिचय" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: अली सिकन्दर ‘जिगर’ १८९०ई. में मुरादाबाद में पैदा हुए। आपके पुर्व...)
 
 
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अली सिकन्दर ‘जिगर’ १८९०ई. में मुरादाबाद में पैदा हुए।  आपके पुर्वज मौलवी मुहम्मद समीअ़ दिल्ली निवासी थे और शाहजहाँ बादशाह के शिक्षक थे।  किसी कारण से बादशाह के कोप-भाजन बन गए।  अतः आप दिल्ली छोड़कर मुरादाबाद जा बसे थे।  ‘जिगर’ के दादा हाफ़िज़ मुहम्मदनूर ‘नूर’ और पिता मौलवी अली नज़र ‘नज़र’ भी शायर थे।
 
अली सिकन्दर ‘जिगर’ १८९०ई. में मुरादाबाद में पैदा हुए।  आपके पुर्वज मौलवी मुहम्मद समीअ़ दिल्ली निवासी थे और शाहजहाँ बादशाह के शिक्षक थे।  किसी कारण से बादशाह के कोप-भाजन बन गए।  अतः आप दिल्ली छोड़कर मुरादाबाद जा बसे थे।  ‘जिगर’ के दादा हाफ़िज़ मुहम्मदनूर ‘नूर’ और पिता मौलवी अली नज़र ‘नज़र’ भी शायर थे।
  
 
‘जिगर’ पहले मिर्ज़ा ‘दाग’ के शिष्य थे।  बाद में ‘तसलीम’ के शिष्य हुए।  इस युग की शायरी के नमूने ‘दागे़जिगर’ में पाये जाते हैं।  असग़र’ की संगत के कारण आप के जीवन में बहुत बडा़ परिवर्तन आया। पहले आपके यहाँ हल्के और आम कलाम की भरमार थी।  अब आपके कलाम में गम्भीरता, उच्चता और स्थायित्व आ गया ।  आपके पढ़ने का ढंग इतना दिलकश और मोहक था कि सैंकड़ो शायर उसकी कॉपी करने का प्रयत्न करते थे... मगर जिगर, जिगर है।
 
‘जिगर’ पहले मिर्ज़ा ‘दाग’ के शिष्य थे।  बाद में ‘तसलीम’ के शिष्य हुए।  इस युग की शायरी के नमूने ‘दागे़जिगर’ में पाये जाते हैं।  असग़र’ की संगत के कारण आप के जीवन में बहुत बडा़ परिवर्तन आया। पहले आपके यहाँ हल्के और आम कलाम की भरमार थी।  अब आपके कलाम में गम्भीरता, उच्चता और स्थायित्व आ गया ।  आपके पढ़ने का ढंग इतना दिलकश और मोहक था कि सैंकड़ो शायर उसकी कॉपी करने का प्रयत्न करते थे... मगर जिगर, जिगर है।

21:45, 17 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

अली सिकन्दर ‘जिगर’ १८९०ई. में मुरादाबाद में पैदा हुए। आपके पुर्वज मौलवी मुहम्मद समीअ़ दिल्ली निवासी थे और शाहजहाँ बादशाह के शिक्षक थे। किसी कारण से बादशाह के कोप-भाजन बन गए। अतः आप दिल्ली छोड़कर मुरादाबाद जा बसे थे। ‘जिगर’ के दादा हाफ़िज़ मुहम्मदनूर ‘नूर’ और पिता मौलवी अली नज़र ‘नज़र’ भी शायर थे।

‘जिगर’ पहले मिर्ज़ा ‘दाग’ के शिष्य थे। बाद में ‘तसलीम’ के शिष्य हुए। इस युग की शायरी के नमूने ‘दागे़जिगर’ में पाये जाते हैं। असग़र’ की संगत के कारण आप के जीवन में बहुत बडा़ परिवर्तन आया। पहले आपके यहाँ हल्के और आम कलाम की भरमार थी। अब आपके कलाम में गम्भीरता, उच्चता और स्थायित्व आ गया । आपके पढ़ने का ढंग इतना दिलकश और मोहक था कि सैंकड़ो शायर उसकी कॉपी करने का प्रयत्न करते थे... मगर जिगर, जिगर है।