भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चंद शे’र / अली अख़्तर‘अख़्तर’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अली अख़्तर ‘अख़्तर’ }} Category:गज़ल <poem> कोई और तर्ज़...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=अली अख़्तर ‘अख़्तर’
+
|रचनाकार=अली अख़्तर 'अख़्तर'
 
}}
 
}}
[[Category:गज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
 
 
कोई और तर्ज़े-सितम सोचिये।
 
कोई और तर्ज़े-सितम सोचिये।
 
दिल अब ख़ूगरे-इम्तहाँ<ref>परीक्षा का अभ्यस्त</ref> हो गया॥
 
दिल अब ख़ूगरे-इम्तहाँ<ref>परीक्षा का अभ्यस्त</ref> हो गया॥
पंक्ति 23: पंक्ति 22:
 
तुझ से हयातो-मौत का मसअला हल अगर न हो।
 
तुझ से हयातो-मौत का मसअला हल अगर न हो।
 
ज़हरे-ग़मे-हयात पी मौत का इन्तज़ार कर॥
 
ज़हरे-ग़मे-हयात पी मौत का इन्तज़ार कर॥
 
 
 
</poem>
 
</poem>
 
 
 
{{KKMeaning}}
 
{{KKMeaning}}

23:22, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

कोई और तर्ज़े-सितम सोचिये।
दिल अब ख़ूगरे-इम्तहाँ<ref>परीक्षा का अभ्यस्त</ref> हो गया॥

कब हुई आपको तौफ़ीके़-करम<ref>कृपा करने का सामर्थ्य</ref>।
आह! जब ताक़ते फ़रियाद नहीं॥

करवटें लेती है फूलों में शराब।
हमसे इस फ़स्ल में तौबा होगी?

नहीं ऐ हमनफ़स! बेवजह मेरी गिरयासामानी।
नज़र अब वाकिफ़े-राज़े तबस्सुम होती जाती है॥

मेरी मज़लूम<ref>अत्याचार</ref> चुप पर शादमानी<ref>प्रसन्नता</ref> का गुमाँ क्यों हो?
कि नाउम्मीदियों के ज़ख़्म को बहना नहीं आता॥

तुझ से हयातो-मौत का मसअला हल अगर न हो।
ज़हरे-ग़मे-हयात पी मौत का इन्तज़ार कर॥

शब्दार्थ
<references/>