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हर मौसम बूंद का संचित विस्तार है | हर मौसम बूंद का संचित विस्तार है | ||
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उत्सुक ॠतुराजों की चिंता अब कौन करे | उत्सुक ॠतुराजों की चिंता अब कौन करे | ||
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दुख है वर्णनातीत संभव अभिव्यक्ति नहीं | दुख है वर्णनातीत संभव अभिव्यक्ति नहीं | ||
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मन का तो सरोकार है केवल याद से | मन का तो सरोकार है केवल याद से | ||
− | + | पहुँचते हैं द्वार-द्वार कितने ही हादसे | |
− | + | भरी-भरी आँखों में सपने हैं डरे-डरे | |
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10:48, 31 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
शब्दों से परे-परे
मन के घन भरे-भरे
वर्षा की भूमिका कब से तैयार है
हर मौसम बूंद का संचित विस्तार है
उत्सुक ॠतुराजों की चिंता अब कौन करे
पीड़ा अनुभूति है वह कोई व्यक्ति नहीं
दुख है वर्णनातीत संभव अभिव्यक्ति नहीं
बादल युग आया है जंगल हैं हरे-हरे
मन का तो सरोकार है केवल याद से
पहुँचते हैं द्वार-द्वार कितने ही हादसे
भरी-भरी आँखों में सपने हैं डरे-डरे