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(नया पृष्ठ: एकांत के प्रतिबिम्ब मैं, डूबता-उतरता हुआ मेरा मन, अन्तरंग विथियो ...)
 
 
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एकांत के प्रतिबिम्ब मैं,
 
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डूबता-उतरता हुआ मेरा मन,  
 
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अन्तरंग विथियो में  
 
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परिमार्जित होते हुए  
 
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मेरे सुख-दुःख,
 
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नीले-नीले सपनो को  
 
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सजाते-संवारते हुए  
 
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मेरी पलकों के पंख  
 
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और शब्दों के  
 
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कोलाहल से भरी हुई,
 
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मेरी चुप्पी ने  
 
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एक दिन,
 
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अपना सारा कुछ  
 
अपना सारा कुछ  
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बाँट दिया  
 
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उंगलियों को,
 
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उंगलियों ने धीरे-धीरे  
 
उंगलियों ने धीरे-धीरे  
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सब कुछ निकलकर  
 
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डायरी के पन्नो में,
 
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रख दिया,  
 
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अब बांटने जैसा
 
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कुछ भी नहीं हैं  
 
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मेरे पास,
 
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तुम्हें दे सकूँ ऐसा  
 
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कुछ भी नहीं हैं  
 
कुछ भी नहीं हैं  
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मेरे पास.
 
मेरे पास.

21:52, 31 जुलाई 2009 के समय का अवतरण

एकांत के प्रतिबिम्ब मैं,

डूबता-उतरता हुआ मेरा मन,

अन्तरंग विथियो में

परिमार्जित होते हुए

मेरे सुख-दुःख,

नीले-नीले सपनो को

सजाते-संवारते हुए

मेरी पलकों के पंख

और शब्दों के

कोलाहल से भरी हुई,

मेरी चुप्पी ने

एक दिन,

अपना सारा कुछ

बाँट दिया

उंगलियों को,

उंगलियों ने धीरे-धीरे

सब कुछ निकलकर

डायरी के पन्नो में,

रख दिया,

अब बांटने जैसा

कुछ भी नहीं हैं

मेरे पास,

तुम्हें दे सकूँ ऐसा

कुछ भी नहीं हैं

मेरे पास.