"काकोल्लूकियम संवाद / ओमप्रकाश सारस्वत" के अवतरणों में अंतर
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem> बाहर वायु के चहरे पर उदासी का मौसम देख कौवे 'हन्म-जात के पास जाक...) |
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | < | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत | ||
+ | |संग्रह=एक टुकड़ा धूप / ओमप्रकाश सारस्वत | ||
+ | }} | ||
+ | <Poem> | ||
बाहर वायु के चहरे पर | बाहर वायु के चहरे पर | ||
उदासी का मौसम देख | उदासी का मौसम देख |
07:42, 5 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
बाहर वायु के चहरे पर
उदासी का मौसम देख
कौवे 'हन्म-जात के पास जाकर बोले--
खगराय !
अगर आप दिन में
अपना सुर अलापने की कृपा करें
तो लोग समझ जाएँगे कि
वक्त रात का है, और
उदासी नींद का परिणाम
लोग तुष्ट हो जायेंगे
(क्योंकि संतुष्टि एक अलभ्य एषणा है)
अन्यथा
हवा अगर फूलों के पास से गुज़र गयी
तो लोग दोनों के चेहरे देख कर
जाँच लेंगे कि
केनल पक्षियों का गा देना ही
मोसम के बदलाव का कारण नहीं हो जाता
बन्धु ! इस अवसरवादी 'कालोल्लूकीयम् संवाद' का
अर्थ स्पष्ट है कि
मौसम: यहाँ कुछ खास होश्यार तंत्रज्ञों ने
पहन रखा है,अंगूठियों की तरह
बीसों अंगुलियों में
हाथों से पाँव की अंगुलियों तक
जिन्हें खोलने के लिए
लौह-पंजों की ज़रूरत है
और देखो
कौवों की साजिश पर उल्लू
तब तलक गुर्राते रहेंगे
जब तलक मक्कारी के विधान में
कोई चाणक्य,नीति का
नया अध्याय नहीं जोड़ देता