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निम्न पंक्तियाँ कल (८-अगस्त-२००९) रची थी:
 
निम्न पंक्तियाँ कल (८-अगस्त-२००९) रची थी:
  
समय खड़ा है द्वार हमारे
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समय खड़ा है द्वार हमारे,<br />
जो कहते भारत को घर
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जो कहते भारत को घर|<br />
वही आज निज भाग्य सवाँरे
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वही आज निज भाग्य सवाँरे,<br />
ले जाएँ चरमोत्कर्ष पर
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ले जाएँ चरमोत्कर्ष पर||<br />
हमें आज ये धरा पुकारे
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हमें आज ये धरा पुकारे,<br />
की आओ मेरी पुकार पर
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की आओ मेरी पुकार पर|<br />
जाती धर्म के काट ये बंधन
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जाती धर्म के काट ये बंधन,<br />
शीश नवाओ शांति पर
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शीश नवाओ शांति पर||<br /><br />
--सुधांशु मिश्र
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--सुधांशु मिश्र<br />
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--[[सदस्य:सुधांशु|सुधांशु]] ०८:३४, ९ अगस्त २००९ (UTC)

14:04, 9 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

कविता कोष के पाठकों को मेरा सादर नमस्कार मैं हिंदी भाषा और कविता का प्रेमी हूँ| कॉलेज के समय में कवितायेँ लिखा करता था| आजकल समय के अभाव में केवल कवितायेँ पढ़ पता हूँ| कभी कभी दो तीन पंक्तियाँ अब भी लिख लेता हूँ| कविता कोष की वेबसाइट देख कर सुखद आश्चर्य हुआ और स्कूल के दिनों ने पाठ्यक्रम में पढ़ी हुई कवितायेँ फिर से पढ़ कर बड़ा अच्छा लगा| कविता कोष की टीम को मेरी बधाइयां और शुभकामनायें| निम्न पंक्तियाँ कल (८-अगस्त-२००९) रची थी:

समय खड़ा है द्वार हमारे,
जो कहते भारत को घर|
वही आज निज भाग्य सवाँरे,
ले जाएँ चरमोत्कर्ष पर||
हमें आज ये धरा पुकारे,
की आओ मेरी पुकार पर|
जाती धर्म के काट ये बंधन,
शीश नवाओ शांति पर||

--सुधांशु मिश्र
--सुधांशु ०८:३४, ९ अगस्त २००९ (UTC)