भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"क्या कहेंगे लोग / नईम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार= नईम 
 +
}}
 
क्या कहेंगे लोग¸
 
क्या कहेंगे लोग¸
  

19:09, 24 जून 2009 के समय का अवतरण

क्या कहेंगे लोग¸

कहने को बचा ही क्या?

यदि नहीं हमने¸

तो उनने भी रचा ही क्या?


उंगलियां हम पर उठाये–कहें तो कहते रहें वे¸

फिर भले ही पड़ौसों में रहें तो रहते रहे वे।

परखने में आज तक¸

उनको जंचा ही क्या?


हैं कि जब मुंह में जुबानें¸ चलेंगी ही।

कड़ाही चूल्हों–चढ़ी कुछ तलेंगी ही।

मुद्दतों से पेट में–

उनके पचा ही क्या?


कहीं हल्दी¸ कहीं चंदन¸ कहीं कालिख¸

उतारू हैं ठोकने को दोस्त दुश्मन सभी नालिश

इशारों पर आज तक

अपने नचा ही क्या?