भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कोई उम्मीद बर नहीं आती / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
					
										
					
					| छो | छो | ||
| पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
| कोई सूरत नज़र नहीं आती <br><br> | कोई सूरत नज़र नहीं आती <br><br> | ||
| − | मौत का एक दिन मु'अय्यन | + | मौत का एक दिन मु'अय्यन है <br> | 
| − | + | ||
| नींद क्यों रात भर नहीं आती <br><br> | नींद क्यों रात भर नहीं आती <br><br> | ||
23:10, 11 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
कोई उम्मीद बर नहीं आती 
कोई सूरत नज़र नहीं आती 
मौत का एक दिन मु'अय्यन है 
नींद क्यों रात भर नहीं आती 
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी 
अब किसी बात पर नहीं आती 
जानता हूँ सवाब-ए-ता'अत-ओ-ज़हद 
पर तबीयत इधर नहीं आती 
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ 
वर्ना क्या बात कर नहीं आती 
क्यों न चीख़ूँ कि याद करते हैं 
मेरी आवाज़ गर नहीं आती 
दाग़-ए-दिल नज़र नहीं आता 
बू-ए-चारागर नहीं आती 
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी 
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती 
मरते हैं आरज़ू में मरने की 
मौत आती है पर नहीं आती 
काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब' 
शर्म तुमको मगर नहीं आती 
 
	
	

