भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शहर नहीं मरा / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत |संग्रह=नियति,इतिहास और जरा...)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=नियति,इतिहास और जरायु / श्रीनिवास श्रीकांत
 
|संग्रह=नियति,इतिहास और जरायु / श्रीनिवास श्रीकांत
 
}}
 
}}
<poem>बर्फ़ में दफ़नाये जाने के बाद भी
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
बर्फ़ में दफ़नाये जाने के बाद भी
 
शहर नहीं मरा
 
शहर नहीं मरा
  
पंक्ति 16: पंक्ति 18:
 
हवेलियां खड़े रहे  
 
हवेलियां खड़े रहे  
 
ध्यानस्थ खड़े रहे
 
ध्यानस्थ खड़े रहे
 
  
 
देवदारुओं से लिपटी  
 
देवदारुओं से लिपटी  

15:41, 27 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

बर्फ़ में दफ़नाये जाने के बाद भी
शहर नहीं मरा

गाया प्रेत-पिशाचों ने मंगल
कूदे-खिड़कियों से बेनक़ाब आदमी
पकड़ने उन बेहया आवाज़ों को
उड़े बाज़ तिलस्मी जंगलों की दिशा में

जंगले
रेलिंग
हवेलियां खड़े रहे
ध्यानस्थ खड़े रहे

देवदारुओं से लिपटी
फ़िरंगियों के पाप-प्रेम की
खिलखिलाहटें पगलायीं

बुलाहटें कल शाम के इतिहास की
माथा फोड़ती रहीं पुराने चण्डुखानों की चौखटों पर
और आते-जाते अजनबी का बाजू पकड़
मौत की घाटियों में स्किइंग करती रही
झबरी आवारा हवा