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"सड़क पर एक आदमी / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

 
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बिजली के तारों पर बैठे पक्षी
सड़क पर<br>
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उसे देखते हैं या नहीं – कहना मुश्किल है
एक आदमी<br>
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हालांकि हवा उसकी बीड़ी के धुएं को
अपनी जेब से निकालकर बीड़ी सुलगाता हुआ<br>
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उड़ाकर ले जा रही है जहां भी वह ले जा सकती है ....
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वह आदमी
उसे देखते हैं या नहीं – कहना मुश्किल है<br>
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हालांकि हवा उसकी बीड़ी के धुएं को<br>
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अपनी ज़िंदगी का दुख–सुख लिए
उड़ाकर ले जा रही है जहां भी वह ले जा सकती है ....<br>
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और ऐसे जैसे कि उसके ऐसे जाने पर
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किसी को फ़र्क नहीं पड़ता
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और कोई नहीं देखता उसे
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न देवता¸ न आकाश और न ही
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संसार की चिंता करने वाले लोग
  
वह आदमी<br>
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सड़क पर जा रहा है<br>
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जैसे शब्दकोष से
अपनी ज़िंदगी का दुख–सुख लिए<br>
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एक शब्द जा रहा है
और ऐसे जैसे कि उसके ऐसे जाने पर<br>
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लोप की ओर ....
किसी को फ़र्क नहीं पड़ता<br>
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और कोई नहीं देखता उसे<br>
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न देवता¸ न आकाश और न ही<br>
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संसार की चिंता करने वाले लोग<br>
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वह आदमी जा रहा है<br>
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और यह कविता न ही उसका जाना रोक सकती है
ज्ौसे शब्दकोष से<br>
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और न ही उसका इस तरह नामहीन
एक शब्द जा रहा है<br>
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ओझल होना ......
लोप की ओर ....<br>
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और यह कविता न ही उसका जाना रोक सकती है<br>
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कल जब शब्द नहीं होगा
और न ही उसका इस तरह नामहीन<br>
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और न ही यह आदमी
ओझल होना ......<br>
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तब थोड़ी–सी जगह होगी
 
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खाली–सी
कल जब शब्द नहीं होगा<br>
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पर अनदेखी
और न ही यह आदमी<br>
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और एक और आदमी
तब थोड़ी–सी जगह होगी<br>
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उसे रौंदता हुआ चला जाएगा।
खाली–सी<br>
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और एक और आदमी<br>
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उसे रौंदता हुआ चला जाएगा।<br>
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18:20, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

वह जा रहा है
सड़क पर
एक आदमी
अपनी जेब से निकालकर बीड़ी सुलगाता हुआ
धूप में–
इतिहास के अंधेरे
चिड़ियों के शोर
पेड़ों में बिखरे हरेपन से बेख़बर
वह आदमी ...

बिजली के तारों पर बैठे पक्षी
उसे देखते हैं या नहीं – कहना मुश्किल है
हालांकि हवा उसकी बीड़ी के धुएं को
उड़ाकर ले जा रही है जहां भी वह ले जा सकती है ....

वह आदमी
सड़क पर जा रहा है
अपनी ज़िंदगी का दुख–सुख लिए
और ऐसे जैसे कि उसके ऐसे जाने पर
किसी को फ़र्क नहीं पड़ता
और कोई नहीं देखता उसे
न देवता¸ न आकाश और न ही
संसार की चिंता करने वाले लोग

वह आदमी जा रहा है
जैसे शब्दकोष से
एक शब्द जा रहा है
लोप की ओर ....

और यह कविता न ही उसका जाना रोक सकती है
और न ही उसका इस तरह नामहीन
ओझल होना ......

कल जब शब्द नहीं होगा
और न ही यह आदमी
तब थोड़ी–सी जगह होगी
खाली–सी
पर अनदेखी
और एक और आदमी
उसे रौंदता हुआ चला जाएगा।