भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सूरज डूब गया बल्ली भर / नरेन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा   
 
|रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा   
}} <poem>
+
}}  
 +
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKCatNavgeet}}
 +
<poem>
 
::सूरज डूब गया बल्ली भर-
 
::सूरज डूब गया बल्ली भर-
 
::सागर के अथाह जल में।
 
::सागर के अथाह जल में।
पंक्ति 19: पंक्ति 22:
 
::मन को खेल खिलाता कोई,
 
::मन को खेल खिलाता कोई,
 
::निशि दिन के छाया-छल में।
 
::निशि दिन के छाया-छल में।
 
 
 
</poem>
 
</poem>

12:43, 8 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

सूरज डूब गया बल्ली भर-
सागर के अथाह जल में।
एक बाँस भर उठ आया है-
चांद, ताड के जंगल में।
अगणित उंगली खोल, ताड के पत्र, चांदनी में डोले,
ऐसा लगा, ताड का जंगल सोया रजत-छत्र खोले
कौन कहे, मन कहाँ-कहाँ
हो आया, आज एक पल में।
बनता मन का मुकुर इंदु, जो मौन गगन में ही रहता,
बनता मन का मुकुर सिंधु, जो गरज-गरज कर कुछ कहता,
शशि बनकर मन चढा गगन पर,
रवि बन छिपा सिंधु तल में।
परिक्रमा कर रहा किसी की, मन बन चांद और सूरज,
सिंधु किसी का हृदय-दोल है, देह किसी की है भू-रज
मन को खेल खिलाता कोई,
निशि दिन के छाया-छल में।