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"तुम भी ख़फ़ा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तों / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=अहमद फ़राज़
 
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09:39, 25 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

तुम भी ख़फा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तों
अ़ब हो चला यकीं के बुरे हम हैं दोस्तों

किसको हमारे हाल से निस्बत हैं क्या करे
आखें तो दुश्मनों की भी पुरनम हैं दोस्तों

अपने सिवा हमारे न होने का ग़म किसे
अपनी तलाश में तो हम ही हम हैं दोस्तों

कुछ आज शाम ही से हैं दिल भी बुझा बुझा
कुछ शहर के चराग भी मद्धम हैं दोस्तों

इस शहरे आरज़ू से भी बाहर निकल चलो
अ़ब दिल की रौनकें भी कोई दम हैं दोस्तों

सब कुछ सही "फ़राज़" पर इतना ज़रूर हैं
दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम हैं दोस्तों