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"कठपुतली / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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कठपुतली
 
कठपुतली
 
गुस्से से उबली
 
गुस्से से उबली
बोली - ये धागे
+
बोली ये धागे
क्यों हैं मेरे पीछे आगे ?
+
क्यों हैं मेरे पीछे - आगे ?
  
तब तक दूसरी कठपुतलियां
+
तब तक दूसरी कठपुतलियाँ
बोलीं कि हां हां हां
+
बोलीं कि हाँ हाँ हाँ
 
क्यों हैं ये धागे
 
क्यों हैं ये धागे
हमारे पीछे-आगे ?
+
हमारे पीछे - आगे ?
हमें अपने पांवों पर छोड़ दो,
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हमें अपने पाँवों पर छोड़ दो,
 
इन सारे धागों को तोड़ दो !
 
इन सारे धागों को तोड़ दो !
  
 
बेचारा बाज़ीगर
 
बेचारा बाज़ीगर
हक्का-बक्का रह गया सुन कर
+
हक्का - बक्का रह गया सुनकर
 
फिर सोचा अगर डर गया
 
फिर सोचा अगर डर गया
तो ये भी मर गयीं मैं भी मर गया
+
तो ये भी मर गईं, मैं भी मर गया
 
और उसने बिना कुछ परवाह किए
 
और उसने बिना कुछ परवाह किए
जोर जोर धागे खींचे
+
ज़ोर - ज़ोर धागे खींचे
 
उन्हें नचाया !
 
उन्हें नचाया !
  
 
कठपुतलियों की भी समझ में आया
 
कठपुतलियों की भी समझ में आया
 
कि हम तो कोरे काठ की हैं
 
कि हम तो कोरे काठ की हैं
जब तक धागे हैं,बाजीगर है
+
जब तक धागे हैं, बाज़ीगर है
 
तब तक ठाट की हैं
 
तब तक ठाट की हैं
 
और हमें ठाट में रहना है
 
और हमें ठाट में रहना है
 
याने कोरे काठ की रहना है
 
याने कोरे काठ की रहना है
 
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20:56, 28 मई 2023 के समय का अवतरण

कठपुतली
गुस्से से उबली
बोली — ये धागे
क्यों हैं मेरे पीछे - आगे ?

तब तक दूसरी कठपुतलियाँ
बोलीं कि हाँ हाँ हाँ
क्यों हैं ये धागे
हमारे पीछे - आगे ?
हमें अपने पाँवों पर छोड़ दो,
इन सारे धागों को तोड़ दो !

बेचारा बाज़ीगर
हक्का - बक्का रह गया सुनकर
फिर सोचा अगर डर गया
तो ये भी मर गईं, मैं भी मर गया
और उसने बिना कुछ परवाह किए
ज़ोर - ज़ोर धागे खींचे
उन्हें नचाया !

कठपुतलियों की भी समझ में आया
कि हम तो कोरे काठ की हैं
जब तक धागे हैं, बाज़ीगर है
तब तक ठाट की हैं
और हमें ठाट में रहना है
याने कोरे काठ की रहना है