भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ कह एक कहानी / मैथिलीशरण गुप्त" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
(4 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=यशोधरा / मैथिलीशरण गुप्त
 
|संग्रह=यशोधरा / मैथिलीशरण गुप्त
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatBaalKavita}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKAnthologyMaa}}
 +
<poem>
 +
"माँ कह एक कहानी।"
 +
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"
 +
"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
 +
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
 +
माँ कह एक कहानी।"
  
"माँ कह एक कहानी।"<br>
+
"तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"<br>
+
तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभि मनमानी।"
"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी<br>
+
"जहाँ सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।"
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?<br>
+
माँ कह एक कहानी।"<br><br>
+
  
"तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,<br>
+
वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,
तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभि मनमानी।"<br>
+
हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।"
"जहाँ सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।"<br><br>
+
"लहराता था पानी, हाँ-हाँ यही कहानी।"
  
वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,<br>
+
"गाते थे खग कल-कल स्वर से, सहसा एक हंस ऊपर से,
हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।"<br>
+
गिरा बिद्ध होकर खग शर से, हुई पक्ष की हानी।"
"लहराता था पानी, हाँ हाँ यही कहानी।"<br><br>
+
"हुई पक्ष की हानी? करुणा भरी कहानी!"
  
"गाते थे खग कल कल स्वर से, सहसा एक हँस ऊपर से,<br>
+
चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,
गिरा बिद्ध होकर खग शर से, हुई पक्ष की हानी।"<br>
+
इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।"
"हुई पक्ष की हानी? करुणा भरी कहानी!"<br><br>
+
"लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।"
  
चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,<br>
+
"मांगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,
इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।"<br>
+
तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।"
"लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।"<br><br>
+
"हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।"
  
"माँगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,<br>
+
हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,
तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।"<br>
+
गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सभी ने जानी।"
"हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।"<br><br>
+
"सुनी सभी ने जानी! व्यापक हुई कहानी।"
 
+
हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,<br>
+
गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सभी ने जानी।"<br>
+
"सुनी सभी ने जानी! व्यापक हुई कहानी।"<br><br>
+
  
 
राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?
 
राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?
सुन लूं तेरी बानी"<br>
+
कह दे निर्भय जय हो जिसका, सुन लूँ  तेरी बानी"
"माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।<br>
+
"माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।
कोई निरपराध को मारे तो क्यों अन्य उसे न उबारे?<br>
+
 
रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।"<br>
+
कोई निरपराध को मारे तो क्यों अन्य उसे न उबारे?
"न्याय दया का दानी! तूने गुनी कहानी।"<br><br>
+
रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।"
 +
"न्याय दया का दानी! तूने गुनी कहानी।"
 +
</poem>

21:27, 15 जनवरी 2020 के समय का अवतरण

"माँ कह एक कहानी।"
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"
"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।"

"तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,
तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभि मनमानी।"
"जहाँ सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।"

वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।"
"लहराता था पानी, हाँ-हाँ यही कहानी।"

"गाते थे खग कल-कल स्वर से, सहसा एक हंस ऊपर से,
गिरा बिद्ध होकर खग शर से, हुई पक्ष की हानी।"
"हुई पक्ष की हानी? करुणा भरी कहानी!"

चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,
इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।"
"लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।"

"मांगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,
तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।"
"हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।"

हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,
गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सभी ने जानी।"
"सुनी सभी ने जानी! व्यापक हुई कहानी।"

राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?
कह दे निर्भय जय हो जिसका, सुन लूँ तेरी बानी"
"माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।

कोई निरपराध को मारे तो क्यों अन्य उसे न उबारे?
रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।"
"न्याय दया का दानी! तूने गुनी कहानी।"