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02:47, 28 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
यों तु देखो, बाछड़े, जी बाछड़े, जी बाछड़े,
हमसे अब आने लगी हैं आप यह मुहरे कड़े।
छान मारे बन के थे अपने जिनके लिए,
वह हिरन जोबन के मद में हैं बन दुल्हा खड़े।
तुम न जाओ देखने को जो उन्हें कुछ बात है,
झाँकने के ध्यान में हैं उनके सब छोटे-बड़े।
है कहावत जी को भावे योंहि पर मुण्डिया हिलाए,
ले चलेंगे आपको हम हैं इसी धुन पर अड़े।
साँस ठंडी भर के रानी केतकी बोली य' मच,
सब तो अच्छा कुछ हुआ पर अब बखेड़े में पड़े।