भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रमता दृग / अमित कल्ला" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमित कल्ला }} <poem> दृग रमता है रमता ही जाता है पाता ...) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=अमित कल्ला | |रचनाकार=अमित कल्ला | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
दृग रमता है | दृग रमता है |
00:06, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
दृग रमता है
रमता ही जाता है
पाता पर्वत
पानी पाताल का चखता
दृग रंग पकड़ता है
रेखाओं की संगत करता
दृग कबीर बन
अन्तरिक्ष के दिगांत विस्तार को
ताने-बाने में बुनता
दृग नानक सा फिरता है
हजारों हज़ार आँखों से देखता
हजारों हज़ार पगों से चलता है
दृग कोयल का काजल
तितली की बिंदिया
पंछी की परछाई
मखमल का जोबन चुराता
दृग शब्द पकड़ता है
इबारतों की इबादत कर
द्रश्य पार कर जाता
दृग रमता है
रमता ही जाता है ।