"मैं छोटी बढ़ई / निर्मला गर्ग" के अवतरणों में अंतर
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मैं बढ़ई होना चाहती थी | मैं बढ़ई होना चाहती थी | ||
− | कितना रोमांचकारी होता है | + | कितना रोमांचकारी होता है तख़्ते पर आरी चलाना |
− | यह | + | यह ख़याल मुझे कहाँ से आया? |
शायद बाई जूई की किताब पढ़ते हुए | शायद बाई जूई की किताब पढ़ते हुए | ||
− | + | हालाँकि उसमें बढ़इगिरी का ज़िक्र तो था नहीं | |
किसी पक्षी के बारे में कुछ था | किसी पक्षी के बारे में कुछ था | ||
मुझे याद आया कठफोड़वा | मुझे याद आया कठफोड़वा | ||
दरभंगा में बाड़ी में देखा था | दरभंगा में बाड़ी में देखा था | ||
− | दिल्ली आने के बाद तो इन सबकी | + | दिल्ली आने के बाद तो इन सबकी गुंजाइश बची नहीं |
− | ढक ढक | + | ढक-ढक |
कठफोड़वा वृक्ष के तने में छेद कर रहा था | कठफोड़वा वृक्ष के तने में छेद कर रहा था | ||
आरी जैसी थी उसकी लंबी चोंच | आरी जैसी थी उसकी लंबी चोंच | ||
− | + | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | |
− | बड़े | + | बड़े कवि गद्यकार थे |
पर बढ़ई भी कोई कम न थे | पर बढ़ई भी कोई कम न थे | ||
− | अपने | + | अपने अंतिम दिनों में बनाया उन्होंने रहने के लिए |
− | पेड़ पर कमरा देखने आए | + | पेड़ पर कमरा |
− | + | देखने आए | |
+ | कवि पत्रकार | ||
चिंतक नाटककार | चिंतक नाटककार | ||
− | इतिहासकार | + | इतिहासकार दार्शनिक |
मैं छोटी बढ़ई होती | मैं छोटी बढ़ई होती | ||
बच्चों के लिए बनाती | बच्चों के लिए बनाती | ||
− | छुक छुक गाड़ी | + | छुक-छुक गाड़ी |
सुग्गा | सुग्गा | ||
टोप लगाए फौजी | टोप लगाए फौजी | ||
खिलौने विहीन बचपन में उनसे कैसी रौनक आती! | खिलौने विहीन बचपन में उनसे कैसी रौनक आती! | ||
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21:58, 27 मई 2010 के समय का अवतरण
मैं बढ़ई होना चाहती थी
कितना रोमांचकारी होता है तख़्ते पर आरी चलाना
यह ख़याल मुझे कहाँ से आया?
शायद बाई जूई की किताब पढ़ते हुए
हालाँकि उसमें बढ़इगिरी का ज़िक्र तो था नहीं
किसी पक्षी के बारे में कुछ था
मुझे याद आया कठफोड़वा
दरभंगा में बाड़ी में देखा था
दिल्ली आने के बाद तो इन सबकी गुंजाइश बची नहीं
ढक-ढक
कठफोड़वा वृक्ष के तने में छेद कर रहा था
आरी जैसी थी उसकी लंबी चोंच
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय
बड़े कवि गद्यकार थे
पर बढ़ई भी कोई कम न थे
अपने अंतिम दिनों में बनाया उन्होंने रहने के लिए
पेड़ पर कमरा
देखने आए
कवि पत्रकार
चिंतक नाटककार
इतिहासकार दार्शनिक
मैं छोटी बढ़ई होती
बच्चों के लिए बनाती
छुक-छुक गाड़ी
सुग्गा
टोप लगाए फौजी
खिलौने विहीन बचपन में उनसे कैसी रौनक आती!